गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
दाँतोंको न कटकटाये। अपने शरीरपर ताल न दे। दोनों संध्याओंके समय अध्ययन, भोजन और शयनका त्याग करे। सन्ध्याकालमें मैथुन और रास्ता चलना भी निषिद्ध है। बेटा! पूर्वाह्नकालमें देवताओंका, मध्याह्नकालमें मनुष्यों (अतिथियों)- का तथा अपराह्नकालमें पितरोंका भक्तिपूर्वक पूजन करना चाहिये। सिरसे स्नान करके देवकार्य या पितृकार्यमें प्रवृत्त होना उचित है। पूर्व या उत्तरकी ओर मुंह करके क्षौर कराये। उत्तम कुलमें उत्पन्न होनेपर भी जो कन्या किसी अङ्गसे हीन, रोगिणी, विकृत रूपवाली, पीले रंगकी, अधिक बोलनेवाली तथा सबके द्वारा निन्दित हो, उसके साथ विवाह न करे। जो किसी अङ्गसे हीन न हो, जिसकी नासिका सुन्दर हो तथा जो सभी उत्तम लक्षणोंसे सुशोभित हो, वैसी ही कन्याके साथ कल्याणकामी पुरुषको विवाह करना चाहिये। पुरुषको उचित है कि स्त्रीकी रक्षा करे, दिनमें शयन और मैथुन न करे। दूसरोंको कष्ट देनेवाला कार्य न करे, किसी जीवको पीड़ा न दे। रजस्वला स्त्री चार रातोंतक सभी वर्णके पुरुषोंके लिये त्याज्य है। यदि कन्याका जन्म रोकना हो तो पाँचवीं रातमें भी स्त्री-सहवास न करे। छठी रात आनेपर स्त्रीके पास जाय; क्योंकि युग्म रात्रियाँ ही इसके लिये श्रेष्ठ हैं। युग्म रात्रियों में स्त्री-सहवाससे पुत्रका जन्म होता है और अयुग्म रात्रियोंमें गर्भाधान करनेसे कन्या उत्पन्न होती है; अतः पुत्रकी इच्छा रखनेवाला पुरुष युग्म रात्रियोंमें ही स्त्रीके साथ शयन करे। पूर्वाह्नमें मैथुन करनेसे विधर्मी और सन्ध्याकालमें करनेसे नपुंसक पुत्र उत्पन्न होता है।
बेटा! हजामत बनवाने, वमन होने, स्त्री- प्रसङ्ग करने तथा श्मशानभूमिमें जानेपर वस्त्रसहित स्नान करे। देवता, वेद, द्विज, साधु, सच्चे महात्मा, गुरु, पतिव्रता, यज्ञकर्ता और तपस्वी-इनकी निन्दा अथवा परिहास न करे। यदि कोई उद्दण्ड मनुष्य ऐसा करता हो तो उसकी बात सुने भी नहीं। अपनेसे श्रेष्ठ और अपनेसे नीचे व्यक्तियोंकी शय्या और आसनपर न बैठे। अमङ्गलमय वेश न धारण करे और मुखसे अमाङ्गलिक वचन भी न बोले। स्वच्छ वस्त्र पहने और श्वेत पुष्पोंकी माला धारण करे। उद्दण्ड, उन्मत्त, अविनीत, शीलहीन, चोरी आदिसे दूषित, अधिक अपव्ययी, लोभी, वैरी, कुलटाके पति, अधिक बलवान्, अधिक दुर्बल, लोकमें निन्दित तथा सबपर सन्देह करनेवाले लोगोंसे कभी मित्रता न करे। साधु, सदाचारी, विद्वान्, चुगली न करनेवाले, सामर्थ्यवान् तथा उद्योगी पुरुषोंसे मित्रता स्थापित करे। विद्वान् पुरुष वेद-विद्या एवं व्रतमें निष्णात पुरुषोंके साथ बैठे। मित्र, दीक्षाप्राप्त पुरुष, राजा, स्नातक, श्वशुर तथा ऋत्विक्-इन छ: पूजनीय पुरुषोंका घर आनेपर पूजन करे। जो द्विज संवत्सरव्रतको पूरा करके घरपर आवें, उनकी अपने वैभवके अनुसार यथासमय आलस्य त्याग करके पूजा करे और कल्याणकामी पुरुष उनकी आज्ञाका पालन करनेके लिये सदा उद्यत रहे। बुद्धिमान् पुरुषको चाहिये कि उन ब्राह्मणोंके फटकारनेपर भी कभी उनके साथ विवाद न करे।
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य