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गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण

शिवपुराण

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1190
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...


श्रीसूतजी बोले- शौनक! सुनो, मैं तुम्हारे सामने गोपनीय कथावस्तु का भी वर्णन करूँगा; क्योंकि तुम शिवभक्तों में अग्रगण्य तथा वेदवेत्ताओं में श्रेष्ठ हो। समुद्र के निकटवर्ती प्रदेश में एक वाष्कल नामक ग्राम है जहाँ वैदिक धर्म से विमुख महापापी द्विज निवास करते हैं। वे सब-के-सब बड़े दुष्ट हैं उनका मन दूषित विषय-भोगों में ही लगा रहता है। वे न देवताओं पर विश्वास करते हैं न भाग्य पर; वे सभी कुटिल-वृत्ति वाले हैं। किसानी करते और भाँति-भाँति के घातक अस्त्र-शस्त्र रखते हैं। वे व्यभिचारी और खल हैं। ज्ञान, वैराग्य तथा सद्धर्म का सेवन ही मनुष्य के लिये परम पुरुषार्थ है- इस बात को वे बिलकुल नहीं जानते हैं। वे सभी पशु बुद्धिवाले हैं। (जहाँ के द्विज ऐसे हों, वहाँ के अन्य वर्णों के विषय में क्या कहा जाय।) अन्य वर्णों के लोग भी उन्हीं की भांति कुत्सित विचार रखनेवाले, स्वधर्म-विमुख एवं खल हैं; वे सदा कुकर्म में लगे रहते और नित्य विषयभोगों में ही डूबे रहते हैं। वहाँ की सब स्त्रियाँ भी कुटिल स्वभाव की, स्वेच्छाचारिणी, पापासक्त, कुत्सित विचारवाली और व्यभिचारिणी हैं। वे सद्व्यवहार तथा सदाचार से सर्वथा शून्य हैं। इस प्रकार वहाँ दुष्टों का ही निवास है। उस वाष्कल नामक ग्राम में किसी समय एक बिन्दुग नामधारी ब्राह्मण रहता था, वह बड़ा अधम था। दुरात्मा और महापापी था। यद्यपि उसकी स्त्री बड़ी सुन्दरी थी, तो भी वह कुमार्ग पर ही चलता था। उसकी पत्नी का नाम चंचुला था; वह सदा उत्तम धर्म के पालन में लगी रहती थी, तो भी उसे छोड़कर वह दुष्ट ब्राह्मण वेश्यागामी हो गया था। इस तरह कुकर्म में लगे हुए उस बिन्दुग के बहुत वर्ष व्यतीत हो गये। उसकी स्त्री चंचुला काम से पीड़ित होने पर भी स्वधर्मनाश के भय से क्लेश सहकर भी दीर्घकाल तक धर्म से भ्रष्ट नहीं हुई। परंतु दुराचारी पति के आचरण से प्रभावित हो आगे चलकर वह स्त्री भी दुराचारिणी हो गयी।

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