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गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण

शिवपुराण

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1190
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...


ब्रह्मा और विष्णु बोले- प्रभो! आप निष्कलरूप हैं। आपको नमस्कार है। आप निष्कल तेज से प्रकाशित होते हैं। आपको नमस्कार है। आप सबके स्वामी हैं। आपको नमस्कार है। आप सर्वात्मा को नमस्कार है अथवा सकल-स्वरूप आप महेश्वर को नमस्कार है। आप प्रणव के वाच्यार्थ हैं। आपको नमस्कार है। आप प्रणवलिंगवाले हैं। आपको नमस्कार है। सृष्टि, पालन, संहार, तिरोभाव और अनुग्रह करनेवाले आपको नमस्कार है। आपके पाँच मुख हैं।  आप परमेश्वर को नमस्कार है। पंचब्रह्म- स्वरूप पाँच कृत्यवाले आपको नमस्कार है। आप सबके आत्मा हैं, ब्रह्म हैं। आपके गुण और शक्तियाँ अनन्त हैं, आपको नमस्कार है। आपके सकल और निष्कल दो रूप हैं। आप सद्गुरु एवं शम्भु हैं आपको नमस्कार है।

नमो निष्कलरूपाय नमो निष्कलतेजसे।
नमः सकलनाथाय नमस्ते सकलात्मने।।
नमः प्रणववाच्याय नमः प्रणवलिङ्गने।
नमः सृष्टद्यादिकर्त्रे च नमः पञ्चमुखाय ते।।
पञ्चब्रह्मस्वरूपाय पञ्चकृत्याय ते नमः।
आत्मने ब्रह्मणे तुभ्यमनन्तगुणशक्तये।।
सकलाकलरूपाय शम्भवे गुरवे नमः।

(शि० पु० विद्ये० स० १०।२८-३०)


इन पद्यों द्वारा अपने गुरु महेश्वर की स्तुति करके ब्रह्मा और विष्णु ने उनके चरणों में प्रणाम किया।

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