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गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण

शिवपुराण

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1190
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...


यह शिवपुराण परम उत्तम शास्त्र है। इसे इस भूतलपर भगवान् शिव का वाङ्मय स्वरूप समझना चाहिये और सब प्रकार से इसका सेवन करना चाहिये। इसका पठन और श्रवण सर्वसाधनरूप है। इससे शिव- भक्ति पाकर श्रेष्ठतम स्थिति में पहुँचा हुआ मनुष्य शीघ्र ही शिवपद को प्राप्त कर लेता है। इसीलिये सम्पूर्ण यत्न करके मनुष्यों ने इस पुराण को पढ़ने की इच्छा की है - अथवा इसके अध्ययन को अभीष्ट साधन माना है। इसी तरह इसका प्रेमपूर्वक श्रवण भी सम्पूर्ण मनोवांक्षित फलों को देनेवाला है। भगवान् शिव के इस पुराण को सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है तथा इस जीवन में बड़े-बड़े उत्कृष्ट भोगों का उपभोग करके अन्त में शिवलोक को प्राप्त कर लेता है।

यह शिवपुराण नामक ग्रन्थ चौबीस हजार श्लोकों से युक्त है। इसकी सात संहिताएँ हैं। मनुष्य को चाहिये कि वह भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से सम्पन्न हो बड़े आदर से इसका श्रवण करे। सात संहिताओं से युक्त यह दिव्य शिवपुराण परब्रह्म परमात्मा के समान विराजमान है और सबसे उत्कृष्ट गति प्रदान करनेवाला है।

जो निरन्तर अनुसंधानपूर्वक इस शिवपुराण को बाँचता है अथवा नित्य प्रेमपूर्वक इसका पाठमात्र करता है वह पुण्यात्मा है-इसमें संशय नहीं है। जो उत्तम बुद्धिवाला पुरुष अन्तकाल में भक्तिपूर्वक इस पुराण को सुनता है उसपर अत्यन्त प्रसन्न हुए भगवान् महेश्वर उसे अपना पद (धाम) प्रदान करते हैं। जो प्रतिदिन आदरपूर्वक इस शिवपुराण का पूजन करता है वह इस संसार में सम्पूर्ण भोगों को भोगकर अन्त में भगवान् शिव के पद को प्राप्त कर लेता है। जो प्रतिदिन आलस्यरहित हो रेशमी वस्त्र आदि के वेष्टन से इस शिवपुराण का सत्कार करता है वह सदा सुखी होता है। यह शिव- पुराण निर्मल तथा भगवान् शिव का सर्वस्व है; जो इहलोक और परलोक में भी सुख चाहता हो, उसे आदर के साथ प्रयत्नपूर्वक इसका सेवन करना चाहिये। यह निर्मल एवं उत्तम शिवपुराण धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रूप चारों पुरुषार्थों को देनेवाला है। अत: सदा प्रेमपूर्वक इसका श्रवण एवं विशेष पाठ करना चाहिये।

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