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गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण

शिवपुराण

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1190
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...


मुने! शिवपुराण का वह सारा माहात्म्य, जो सम्पूर्ण अभीष्ट को देनेवाला है मैंने तुम्हें कह सुनाया। अब और क्या सुनना चाहते हो? श्रीमान् शिवपुराण समस्त पुराणों के भाल का तिलक माना गया है। यह भगवान् शिव को अत्यन्त प्रिय, रमणीय तथा भवरोग का निवारण करनेवाला है। जो सदा भगवान् शिव का ध्यान करते हैं, जिनकी वाणी शिव के गुणों की स्तुति करती है और जिनके दोनों कान उनकी कथा सुनते हैं इस जीव-जगत्‌ में उन्हीं का जन्म लेना सफल है। वे निश्चय ही संसार- सागरसे पार हो जाते हैं।

ते जन्मभाज खलु जीवलोके ये वै सदा ध्यायन्ति विश्वनाथम्।
वाणी गुणान् स्तौति कथा श्रृणोति श्रोत्रद्वय ते भवमुत्रन्ति।।

भिन्न-भिन्न प्रकार के समस्त गुण जिनके सच्चिदानन्दमय स्वरूप का कभी स्पर्श नहीं करते, जो अपनी महिमा से जगत्‌ के बाहर और भीतर भासमान हैं तथा जो मन के बाहर और भीतर वाणी एवं मनोवृत्तिरूप में प्रकाशित होते हैं, उन अनन्त आनन्दघनरूप परम शिव की मैं शरण लेता हूँ ।

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