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गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण

शिवपुराण

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1190
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...


अमृत के समान मधुर अक्षरों से युक्त गौरीदेवी का यह वचन आदरपूर्वक सुनकर चंचुला ने हाथ जोड़ मस्तक झुकाकर उन्हें बारंबार प्रणाम किया और अपने पति के समस्त पापों की शुद्धि तथा उत्तम गति की प्राप्ति के लिये पार्वतीदेवी से यह प्रार्थना की कि 'मेरेपति को शिवपुराण सुनाने की ब्यवस्था होनी चाहिये'। उस ब्राह्मणपत्नी के बारंबार प्रार्थना करने पर शिवप्रिया गौरीदेवी को बड़ी दया आयी। उन भक्तवत्सला महेश्वरी गिरिराजकुमारी ने भगवान् शिव की उत्तम कीर्ति का गानकरने वाले गन्धर्वराज तुम्बुरु को बुलाकर उनसे प्रसन्नतापूर्वक इस प्रकार कहा- 'तुम्बुरो! तुम्हारी भगवान् शिव में प्रीति है। तुम मेरे मन की बातों को जानकर मेरे अभीष्ट कार्यों को सिद्ध करनेवाले हो। इसलिये मैं तुमसे एक बात कहती हूँ। तुम्हारा कल्याण हो। तुम मेरी इस सखी के साथ शीघ्र ही विन्ध्यपर्वत पर जाओ। वहाँ एक महाघोर और भयंकर पिशाच रहता है। उसका वृत्तान्त तुम आरम्भ से ही सुनो! मैं तुमसे प्रसन्नतापूर्वक सब कुछ बताती हूँ। पूर्वजन्म में वह पिशाच बिन्दुग नामक ब्राह्मण था। मेरी इस सखी चंचुला का पति था, परंतु वह दुष्ट वेश्यागामी हो गया। स्नान-संध्या आदि नित्यकर्म छोड़कर अपवित्र रहने लगा। क्रोध के कारण उसकी बुद्धि पर मूढ़ता छा गयी थी - वह कर्तव्याकर्तव्य का विवेक नहीं कर पाता था। अभक्ष्यभक्षण, सज्जनों से द्वेष और दूषित वस्तुओं का दान लेना - यही उसका स्वाभाविक कर्म बन गया था। वह अस्त्र-शस्त्र लेकर हिंसा करता, बायें हाथ से खाता, दीनों को सताता और क्रूरतापूर्वक पराये घरों में आग लगा देता था। चाण्डालों से प्रेम करता और प्रतिदिन वेश्या के सम्पर्क में रहता था। बड़ा दुष्ट था। वह पापी अपनी पत्नी का परित्याग करके दुष्टों के संग में ही आनन्द मानता था। वह मृत्युपर्यन्त दुराचार में ही फँसा रहा। फिर अन्तकाल आने पर उसकी मृत्यु हो गयी। वह पापियों के भोगस्थान घोर यमपुर में गया और वहाँ बहुत-से नरकों का उपभोग करके वह दुष्टात्मा जीव इस समय विन्ध्यपर्वत पर पिशाच बना हुआ है। वहीं वह दुष्ट पिशाच अपने पापों का फल भोग रहा है। तुम उसके आगे यत्नपूर्वक शिवपुराण की उस दिव्य कथा का प्रवचन करो, जो परम पुण्यमयी तथा समस्त पापों का नाश करनेवाली है। शिवपुराण की कथा का श्रवण सबसे उत्कृष्ट पुण्यकर्म है। उससे उसका हृदय शीघ्र ही समस्त पापों से शुद्ध हो जायगा और वह प्रेतयोनि का परित्याग कर देगा। उस दुर्गति से मुक्त होने पर बिन्दुग नामक पिशाच को मेरी आज्ञा से विमानपर बिठाकर तुम भगवान् शिव के समीप ले आओ।'

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