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गीता प्रेस, गोरखपुर >> श्रीमद्भगवद्गीता माहात्म्यसहित

श्रीमद्भगवद्गीता माहात्म्यसहित

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :383
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1161
आईएसबीएन :00000

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इसमें गीता के प्रत्येक अध्याय का माहात्म्य मूल पाठ और उसके साथ ही उस अध्याय का सरल भाषा में अर्थ दिया गया है। ...

Shri Madbhagwatgeeta Mahatmyasahit-A Hindi Book by Geetapres Gorakhpur श्रीमद्भगवद्गीता माहात्म्यसहित - गीताप्रेस

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

निवेदन

सर्वसाधारण को गीता की अमोघ महिमा का ज्ञान कराने के लिये यह सरल सटीक संस्करण प्रकाशित किया गया है। इसमें गीता के प्रत्येक अध्याय का महात्म्य, मूल पाठ और उसके साथ ही उस अध्याय का सरल भाषा में अर्थ भी दिया गया है। स्त्रियों, बालकों और वृद्धों की सुविधा के लिए महात्म्य और अर्थ मोटे टाइप में दिया गया है
यह महात्म्य पद्मपुराण के उत्तराखण्ड (अध्याय 175 से अध्याय 192 तक)- से लिया गया है।

-प्रकाशक


श्रीमद्भगवद्गीता के पहले अध्याय का माहात्म्य



श्री पार्वती जी ने कहा—भगवन् ! आप सब तत्त्वों के ज्ञाता हैं। आपकी कृपा से मुझे श्रीविष्णु-सम्बन्धी नाना प्रकार के धर्म सुनने को मिले, जो समस्त लोकका उद्धार करनेवाले है। देवेश ! अब मैं गीता का माहात्म्य सुनना चाहती हूँ, जिसका श्रवण करने से श्रीहरि में भक्ति बढ़ती है
श्रीमहादेव जी बोले—जिनका श्रीविग्रह अलसी के फूल की भाँति श्याम-वर्ण का है, पक्षिराज गरुण ही जिनके वाहन हैं, जो अपनी महिमा से कभी च्युत नहीं होते तथा शेषनाग की शय्या पर शयन करते हैं, उन भगवान् महाविष्णु की हम उपासना करते है। एक समय की बात ही, मुर दैत्य के नाशक भगवान् विष्णु शेषनाग के रमणीय आसनपर सुखपूर्वक विराजमान थे।

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