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भारतीय जीवन और दर्शन >> मेघदूतम्-कालिदास विरचित

मेघदूतम्-कालिदास विरचित

संसारचन्द्र

प्रकाशक : मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :327
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 11359
आईएसबीएन :8120823575

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तत्रावश्यं वलयकुलिशोद्घट्टनोद्गीर्णतोयं।
नेष्यन्ति त्वां सुरयुवतयो यन्त्रधारागृहत्वम्।
ताभ्यो मोक्षस्तव यदि सखे घर्मलब्धस्य न स्यात्
क्रीडालोलाः श्रवणपरुषैर्गजितेर्भीषयेस्ता:।।६१।।

हेमाम्भोजप्रसव सलिलं मानसस्याददानः
कुर्वन् कामं क्षणमुखपटप्रीति मैरावतस्य।
धुन्वन् कल्पद्रुमकिसलयान्यंशुकानीव वात
ननाचेष्टैर्जलद ! ललितैनिविशेस्तं नगेन्द्रम्।।६२।।

तस्योत्सङ्गे प्रणयिन इव स्रस्तगङ्गादुकूलां।
न त्वं दृष्ट्वा न पुनरलकां ज्ञास्यसे कामचारिन्।
या वः काले वहति सलिलोद्गारमुच्चैविमाना
मुक्ताजालग्रथितमलकं कामिनीवाभ्रवृन्दम् ॥६३।।

।।इति पूर्वमेघः।।




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