लोगों की राय

वास्तु एवं ज्योतिष >> लघुपाराशरी सिद्धांत

लघुपाराशरी सिद्धांत

एस जी खोत

प्रकाशक : मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :630
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 11250
आईएसबीएन :8120821351

Like this Hindi book 0

4.7 होरा, लग्न


कभी तीन सूत्रों से तीन अलग खंड अर्थात पूर्ण, अल्प व मध्य आयु खंड प्राप्त होते हैं। ऐसी परिस्थिति में जन्म लग्न व होरा लग्न की राशि से आयु खंड का निर्णय होता है।
जातक का जन्म सूर्योदय के कितने घंटे बाद हुआ है, उतनी राशि होरा राशि मान बनेगी। विज्ञ ज्योतिषी इस तथ्य से अनजान नहीं कि भाव लग्न 5 घटी या दो घंटे में एक राशि आगे बढ़ता है तो घटी लग्न एक घटी या 24 मिनट में एक राशि आगे बढ़ जाता है।

प्राणपर लग्न-चौथाई घटी या मात्र 6 मिनट में एक राशि आगे बढ़ता है। अर्थात् एक घंटे में दस राशि चलता है। इसी प्रकार सूर्योदय के बाद जितने घंटे बीतने पर जातक का जन्म हो उतनी राशि अर्थात् एक राशि प्रति घंटा के हिसाब से होरा लग्न आगे बढ़ जाता है।

यदि सूर्योदय का स्थानीय समय प्रातः 5.32 हो तथा जन्म सूर्योदय के 11 घंटे 3 मिनट बाद अर्थात अपराहून काल में 4 बजकर 35 मिनट या 16.35 पर हो तो निम्न प्रकार गणना होगी।

नियम
(i) यदि जन्म लग्न विषम राशि में हो तो जन्मकालीन सूर्य स्पष्ट में होरा राशि मान जोड़ें।
(ii) यदि जन्म लग्न सम राशि में हो तो लग्न स्पष्ट में होरा राशि मान जोड़े। कन्या लग्न सम राशि है तथा लग्न स्पष्ट 5:14:19 है। (iii) होरा लग्न = लग्न स्पष्ट + होरा राशि मान

लग्न स्पष्ट = 5 : 14 : 19
होरा राशि मान = 11 : 1 : 30 होरा लग्न 4 : 15 : 49
होरा लग्न = 16 : 15 : 49
घटाएँ = 12 : 0 : 0
= 4 : 15 : 49
= होरा लग्न सिंह 15:49
लग्न द्विस्वभाव व होरा लग्न स्थिर राशि में होने से पुनः पूर्ण आयुयोग बना है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. अपनी बात
  2. अध्याय-1 : संज्ञा पाराशरी

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book