गीता प्रेस, गोरखपुर >> महापाप से बचो महापाप से बचोस्वामी रामसुखदास
|
9 पाठकों को प्रिय 190 पाठक हैं |
प्रस्तुत पुस्तक मनुष्यों को सचेत करती है पाप किसी के भी द्वारा हुआ हो उसे उसका परिणाम देर सवेर भुगतना ही पड़ता है यह पुस्तक मनुष्य को सचेत करती है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
(संवर्धित संस्करण)
ब्रह्महत्या सुरापानं स्तेयं गुर्वंग्नागम:।
महान्ति पातकान्याहु: संसर्गश्चापि तै: सह।।
महान्ति पातकान्याहु: संसर्गश्चापि तै: सह।।
(मनुस्मृति 11/54)
‘ब्राह्मण की हत्या करना, मदिरा पीना, स्वर्ण आदि की चोरी करना
और
गुरुपत्नी के साथ व्यभिचार करना- ये चार महापाप हैं। इन चारों में किसी भी
महापाप को करने वाले के साथ कोई तीन वर्ष तक रहता है, उसको भी फल मिलता
है, जो महापापी को मिलता है।’*
1.ब्रह्महत्या
चारों वर्णों का गुरु ब्राह्मण है- ‘वर्णानां ब्राह्मणो
गुरु:’; शास्त्रीय ज्ञान का जितना प्रकाश ब्राह्मण-जाति से
...................................................................
*स्तेनो हिरण्य सुरां पिबँश्च गुरोस्तल्पमावसन्ब्रह्महा चैते पतन्ति चत्वार: पंचमश्चाचरँस्तैरति।।
(छान्दोग्य.5/10/9)
...................................................................
*स्तेनो हिरण्य सुरां पिबँश्च गुरोस्तल्पमावसन्ब्रह्महा चैते पतन्ति चत्वार: पंचमश्चाचरँस्तैरति।।
(छान्दोग्य.5/10/9)
हुआ है, उतना और किसी जाति से नहीं हुआ है। अत: ब्राह्मण की हत्या करना
महापाप है। इसी तरह जिससे दुनिया का हित होता है, ऐसे हितकारी पुरुषों को,
भगवद्भक्त को तथा गाय आदि को मारना भी महापाप ही है। कारण कि जिसके द्वारा
दूसरों का जितना अधिक हित होता है, उसकी हत्या से उतना ही अधिक पाप लगता
है।
2.मदिरापान
मांस, अण्डा, सुल्फा, भाँग आदि सभी अशुद्ध और नशा करने वाले पदार्थों का
सेवन करना पाप है; परन्तु मदिरा पीना महापाप है। कारण कि मनुष्य के भीतर
जो धार्मिक भावनाएँ रहती हैं, धर्म की रुचि, संस्कार रहते हैं, उनको
मदिरापान नष्ट कर देता है। इससे मनुष्य महान् पतन की तरफ चला जाता है।
|
विनामूल्य पूर्वावलोकन
Prev
Next
Prev
Next
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book