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लघुपाराशरी एवं मध्यपाराशरी

केदारदत्त जोशी

प्रकाशक : मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :122
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 11248
आईएसबीएन :8120823540

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1.2 ग्रन्थ का प्रयोजन


वयं पाराशरी होराम् अनुसृत्य यथामति
उडुदाय प्रदीप आख्यं दैवविदाम् मुदे ।।2।।

महर्षि पराशर द्वारा रचित ‘बृहत् पाराशर होरा शास्त्र' का अपनी बुद्धि के अनुसार अनुसरण कर ज्योतिषियों (दैवज्ञ गण) की प्रसन्न्ता के लिए ‘उडुदाय प्रदीप नामक ग्रन्थ की रचना करते हैं।

टिप्पणी-इस ग्रन्थ का मूलनाम 'उडुदाय प्रदीप' अर्थात नक्षत्र दशा पर प्रकाश डालने वाला ग्रन्थ रहा होगा जो कालान्तर में 'लघु पाराशरी' के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

ग्रन्थ का विषय (i) महर्षि पाराशर के कतिपय महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों का अपनी बुद्धि और अनुभव के अनुसार प्रतिपादन।

सम्बन्ध-(ii) बृहत् ‘पाराशर होरा शास्त्र' को भली प्रकार आत्मसात करने के लिए ही ‘लघु पाराशरी’ की रचना हुई है। अतः ‘बृहत् पाराशर होराशास्त्र' बोध (जानने योग्य ग्रन्थ) तो लघु पाराशरी, बोधक या उसकी कुंजी है।
प्रयोजन–(iii) दैवज्ञ गण की प्रसन्नता, सुविधा और मार्गदर्शन के उद्देश्य से इस ग्रन्थ की रचना की गई है।

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    अनुक्रम

  1. अपनी बात
  2. अध्याय-1 : संज्ञा पाराशरी

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