नई पुस्तकें >> लज्जा लज्जाइलाचन्द्र जोशी
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
कमलिनी (सेक्रेटरी का यही नाम था) इस ढंग से मुस्कराने लगी जैसे वह मेरे दिल की सब बातें ताड़ गयी हो। बोली, ‘‘ऐसे गुणवान पुरुष को स्त्रियों की महफ़िल में लाना क्या खतरे की बात नहीं है ?’’ मैंने पूछा, ‘‘खतरा कैसा ?’’ ‘‘अरी पगली, समझती नहीं ? तेरे अनुमोदित और इच्छित पुरुष की आँखे जब इतनी अलबेली नारियों पर दौड़ेंगी तो क्या फिर वह तेरी परवाह करेगा ?’’ ‘‘दुर ! कहके मैंने, गुस्से में आकर उसकी पीठ पर एक धौल जमा दी। पर उसकी इस बात से मेरे हृदय में भय का संचार होने लगा। कमलिनी ने कहा, ‘‘अच्छी बात है। मुझे कोई ऐतराज नहीं। पर मैं सावधान किये देती हूँ। पीछे पछताना पड़ेगा।’’ यूनिवर्सिटी के लड़कों और प्रोफेसरों के साथ कमलिनी की बड़ी घनिष्ठता थी। बहुत संभव है, उन लोगों के स्वाभाव से परिचित होने पर वह पुरुषों कि प्रकृति से अभिज्ञ हो चुकी थी। उसकी बात से कुछ भय होने पर भी मुझे विशेष चिंता नहीं हुई। मुझे अपने रूप-गुण का बड़ा घमंड था। किसी व्यक्ति को मुझे छोड़कर अन्यत्र जाने का लोभ हो सकता है, यह आशंका मेरे हृदय में उत्पन्न नहीं हो सकती थी।
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