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गीता प्रेस, गोरखपुर >> व्यवहार में परमार्थ की कला

व्यवहार में परमार्थ की कला

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2003
पृष्ठ :208
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1081
आईएसबीएन :00000

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प्रस्तुत है व्यवहार में परमार्थ की कला....

इसमें अनुभव-सिद्ध तत्त्वों का विवेचन और आदर्श सद्गुणों का प्रदर्शन बड़े ही सुन्दर ढंग से किया गया है। आसुरी दुर्गुणों से छूटकर अपनी ऐहिक और पारलौकिक उन्नति चाहनेवाले और मनुष्य-जीवन में परम ध्येय की प्राप्ति करने की इच्छा रखनेवाले प्रत्येक नर-नारी को इस ग्रन्थ का अध्ययन और मनन करना चाहिए।

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