उपन्यास >> माटी कहे कुम्हार से माटी कहे कुम्हार सेमिथिलेश्वर
|
0 |
झोपड़पट्टियों में हाशिये के जीवन की तल्ख सच्चाई से यह उपन्यास इक्कीसवीं सदी के भारतीय गाँवों की बेबाक पड़ताल करते हुए शहर में पहुँच,
झोपड़पट्टियों में हाशिये के जीवन की तल्ख सच्चाई से यह उपन्यास इक्कीसवीं सदी के भारतीय गाँवों की बेबाक पड़ताल करते हुए शहर में पहुँच, शहरी जीवन एवं शहरी समाज की पर्तें उधेड़ उनकी प्रखर अन्तरकथा प्रस्तुत करता है; और फिर यहाँ के जीवन एवं समाज की जिम्मेवार भारतीय लोकतन्त्र की राजनीति का कच्चा चिट्ठा खोलकर रख देता है. इस रूप में यह उपन्यास भारतीय जीवन, समाज एवं राजनीति की महागाथा बन जाता है.
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book