नाटक-एकाँकी >> कन्धे पर बैठा था शाप कन्धे पर बैठा था शापमीरा कांत
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मीरा कांत की यह कृति उन छूटे हुए, अव्यक्त पात्रों एवं स्थितियों की अभिव्यक्ति है जो या तो साहित्यिक मुख्यधारा का अंग न बन सकीं
मीरा कांत की यह कृति उन छूटे हुए, अव्यक्त पात्रों एवं स्थितियों की अभिव्यक्ति है जो या तो साहित्यिक मुख्यधारा का अंग न बन सकीं या फिर उसकी सरहद पर ही रहीं. इस नाट्य त्रयी का पहला नाटक जो कालिदास के अन्तिम दिनों, अन्तिम उच्चरित शब्दों, अन्तिम पद्य-रचना, उनके प्राय विस्मृत मित्र कवि कुमारदास और उस मित्र के प्रेम-प्रसंग के माध्यम से स्त्री-विमर्श का एक नया वातायन खोलता है. दूसरा नाटक कालिदास विरचित 'मेघदूतम' के कथा-तत्त्व के अन्तिम सिरे को कल्पना की पोरों से उठाकर एक भिन्न व सर्वथा नयी वीथि की ओर बढाने का सुन्दर प्रयास है. तीसरा नाटक, विस्थापन और डायस्पोरा के दर्द से बुने कश्मीर के समसामयिक यथार्थ को स्वर देता है.
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