गीता प्रेस, गोरखपुर >> मनुष्य जीवन का उद्देश्य मनुष्य जीवन का उद्देश्यजयदयाल गोयन्दका
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प्रस्तुत मनुष्य जीवन का उद्देश्य श्रीजयदयालजी गोयन्दका के प्रवचनों से संकलित है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
निवेदन
संसार में अनन्त जीव हैं। वे नाना योनियों में अनादिकाल से भटक रहे हैं,
महान् दुःख पा रहे हैं, कभी कृपा करके भगवान इस जीव को मनुष्य शरीर देते
हैं। कबहुँक करि करुना नर देही। देत ईस बिनु हेतु सनेही।। मनुष्य-शरीर
पाकर यह सोच नहीं पाता मुझे ऐसा विवेकयुक्त मनुष्य- शरीर किस प्रयोजन के
लिये मिला है। मुझे भगवान ने कर्म करने की स्वतन्त्रता प्रदान की है। यह
मनुष्य योनि अन्य सभी योनियों से श्रेष्ठ है। योनि का उद्देश्य क्या है ?
इस रहस्य को महापुरुष ही यथार्थ जानते हैं।
हमारी दृष्टि में गीता प्रेम के संस्थापक श्रीजयदयालजी गोयन्दका एक अधिकार प्राप्त महापुरुष हुए। उनके ह्रदय में एक भाव निरन्तर बना रहता है कि मनुष्य का दुःखों से पिण्ड कैसे छूटे ? सारे दुःख पापों का फल हैं। सबसे बड़ा दुःख है पुनः पुनः जन्मना–मरना, इससे प्रत्येक भाई-बहिन किस प्रकार मुक्त हों ?
इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये वे ग्रीष्म-ऋतु में स्वर्गाश्रम में गंगातट पर वृक्ष के नीचे सत्संग का आयोजन करते थे, जहां गृहस्थी भाई-बहिन तथा साधु तीन-चार महीनों के लिये एकत्र होते थे। उनके प्रवचनों के विषय थे-निःस्वार्थभाव से भगवान् समझकर प्राणियों की सेवा, भगवान् के निराकार-साकार-स्वरूप, गीता, रामायण आदि की महत्वपूर्ण बातें। इन प्रवचनों को अपने जीवन में लानेवाला इस संसार-बन्धन से छूटकर परम आनन्द को प्राप्त हो सकता है। उन प्रवचनों को उस समय किसी भाई ने लिख दिया था। उन प्रवचनों का लाभ हमलोगों को मिल सके, इस भाव से उन्हें पुस्तक का रूप दिया जा रहा है। यह पुस्तक सन् 1940 में दिए गये कुछ प्रवचनों का संग्रह है।
हमें आशा है पाठकगण इन्हें पढेंगे, मनन करेंगे तथा अपने जीवन में लाकर अपने मनुष्य-जन्म को सार्थक करेंगे।
हमारी दृष्टि में गीता प्रेम के संस्थापक श्रीजयदयालजी गोयन्दका एक अधिकार प्राप्त महापुरुष हुए। उनके ह्रदय में एक भाव निरन्तर बना रहता है कि मनुष्य का दुःखों से पिण्ड कैसे छूटे ? सारे दुःख पापों का फल हैं। सबसे बड़ा दुःख है पुनः पुनः जन्मना–मरना, इससे प्रत्येक भाई-बहिन किस प्रकार मुक्त हों ?
इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये वे ग्रीष्म-ऋतु में स्वर्गाश्रम में गंगातट पर वृक्ष के नीचे सत्संग का आयोजन करते थे, जहां गृहस्थी भाई-बहिन तथा साधु तीन-चार महीनों के लिये एकत्र होते थे। उनके प्रवचनों के विषय थे-निःस्वार्थभाव से भगवान् समझकर प्राणियों की सेवा, भगवान् के निराकार-साकार-स्वरूप, गीता, रामायण आदि की महत्वपूर्ण बातें। इन प्रवचनों को अपने जीवन में लानेवाला इस संसार-बन्धन से छूटकर परम आनन्द को प्राप्त हो सकता है। उन प्रवचनों को उस समय किसी भाई ने लिख दिया था। उन प्रवचनों का लाभ हमलोगों को मिल सके, इस भाव से उन्हें पुस्तक का रूप दिया जा रहा है। यह पुस्तक सन् 1940 में दिए गये कुछ प्रवचनों का संग्रह है।
हमें आशा है पाठकगण इन्हें पढेंगे, मनन करेंगे तथा अपने जीवन में लाकर अपने मनुष्य-जन्म को सार्थक करेंगे।
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