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कविता संग्रह >> होने न होने से परे

होने न होने से परे

अमित कल्ला

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 10349
आईएसबीएन :9788126314089

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कल्पना, स्वप्न एवं सहज को अप्रासंगिक बनाने की जो निर्द्वन्द्व मुहिम चल रही है…..

कल्पना, स्वप्न एवं सहज को अप्रासंगिक बनाने की जो निर्द्वन्द्व मुहिम चल रही है, ऐसे उत्तरआधुनिक समय में, अपनी अबोध-आस्था के साथ युवा कवि अमित कल्ला की उपस्थिति विशिष्ट आश्वस्ति से भर देती है। उनके प्रथम काव्य-संग्रह 'होने न होने से परे' का 'पाठ' ऐसी ही सर्वथा उस 'अलग सहानुभूति' की माँग करता है जो दुर्लभ हो चली है।

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