उपन्यास >> देवदास देवदासशरतचन्द्र चट्टोपाध्याय
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बहुत कम 'आधुनिक' किताबों की नियति वैसी रही है जैसी कि 'देवदास' की---
बहुत कम 'आधुनिक' किताबों की नियति वैसी रही है जैसी कि 'देवदास' की--- एक अप्रत्याशित मिथकीयता से घिर जाने की नियति। इसके प्रकाशन के पूर्व शायद ही कोई यह कल्पना कर सकता था कि यह कृति एक पुस्तक से अधिक एक मिथक हो जाएगी और इसमें शायद ही किसी को कोई सन्देह हो कि पुस्तक कि यह मिथकीय अवस्था उसके मुख्य पात्र देवदास के एक मिथक, एक कल्ट में बदल जाने से है।
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