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भाषा एवं साहित्य >> हिन्दी व्याकरण के नवीन क्षितिज

हिन्दी व्याकरण के नवीन क्षितिज

रवीन्द्र कुमार पाठक

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :424
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 10317
आईएसबीएन :9788126319640

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व्याकरण' अपने प्रकट स्वरुप में एककालिक (या स्थिरवत प्रतीयमान ) भाषा का विश्लेषण है,

व्याकरण' अपने प्रकट स्वरुप में एककालिक (या स्थिरवत प्रतीयमान ) भाषा का विश्लेषण है, जो भाषाकृति-परक है. किन्तु, वह पूर्णता व संगति तभी पता है जब ऐतिहासिक-तुलनात्मक भाषावैज्ञानिक प्रक्रियाओं तथा अर्थ-विचार की धारणाओं के भीतर से निकल कर आये.

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