गीता प्रेस, गोरखपुर >> नेत्रों में भगवान को बसा लें नेत्रों में भगवान को बसा लेंजयदयाल गोयन्दका
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गीताभवन में दिये गये प्रवचनों से हम यदि एक प्रवचन की बातों को भी जीवन में ला सके तो हमारा कल्याण निश्चित है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
निवेदन
आज जिधर दृष्टि डालते हैं उधर ही कलह, अशान्ति, संघर्ष का बोलबाला दीख रहा
है। भौतिक सुख की इच्छा ही इनके होने में प्रधान हेतु हैं। भैतिकता का ही
प्रचार हो रहा है। मनुष्य जन्म हमें किसलिए मिला है ? हम यहाँ क्या कर रहे
हैं ? हमें यहाँ इस संसार में सुख, शान्ति कैसे प्राप्त हो सकती है तथा
हमayal जन्म-मरण के चक्र से छूटकर परमानन्द की प्राप्ति कैसे कर सकते हैं
? इन
बातों की ओर हमारा ध्यान ही नहीं जाता।
गीताप्रेस के संस्थापक परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका के मनमें यह भाव बड़ा प्रबल था कि हमलोगों को गृहस्थाश्रममें सुख, शान्ति कैसे रहे तथा हमें भगवत्प्राप्ति हो सके। या तो इसी जन्म में हम भगवत्प्राप्ति कर लें नहीं तो कम-से-कम भविष्य में हमें जन्म न लेना पड़े।। इस उद्देश्य को लेकर उनके सभी सत्संग, प्रवचन होते थे। ऐसी सरल भाषा में वे प्रवचन होते थे कि सभी भाई, बहिन, बालक भी उनको समझ लें। ऐसी कीमती बातें, दैनिक व्यवहार में लाने से घर में कलह और अशान्ति न रहे।
ये प्रवचन लगभग 60 वर्ष पहले प्रायः गीताभवन में दिये गये थे, जिन्हें किसी सज्जन ने लिख लिया था। उन प्रवचनों से हम, आप लाभ ले लें इस उद्देश्य से इन प्रवचनों को पुस्तकरूप में प्रकाशित किया जा रहा है। यदि हम एक प्रवचन की बातों को भी जीवन में ला सकें तो हमारा कल्याण निश्चित है। अतः पाठक, पाठिकाओं से विनम्र निवेदन है कि इस पुस्तक को अवश्य पढ़ें, औरों को पढ़ने दें तथा अपने जीवन में इन बातों को लाकर हम सुख, शान्ति से रहते हुए परमानन्द की प्राप्ति कर लें।
गीताप्रेस के संस्थापक परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका के मनमें यह भाव बड़ा प्रबल था कि हमलोगों को गृहस्थाश्रममें सुख, शान्ति कैसे रहे तथा हमें भगवत्प्राप्ति हो सके। या तो इसी जन्म में हम भगवत्प्राप्ति कर लें नहीं तो कम-से-कम भविष्य में हमें जन्म न लेना पड़े।। इस उद्देश्य को लेकर उनके सभी सत्संग, प्रवचन होते थे। ऐसी सरल भाषा में वे प्रवचन होते थे कि सभी भाई, बहिन, बालक भी उनको समझ लें। ऐसी कीमती बातें, दैनिक व्यवहार में लाने से घर में कलह और अशान्ति न रहे।
ये प्रवचन लगभग 60 वर्ष पहले प्रायः गीताभवन में दिये गये थे, जिन्हें किसी सज्जन ने लिख लिया था। उन प्रवचनों से हम, आप लाभ ले लें इस उद्देश्य से इन प्रवचनों को पुस्तकरूप में प्रकाशित किया जा रहा है। यदि हम एक प्रवचन की बातों को भी जीवन में ला सकें तो हमारा कल्याण निश्चित है। अतः पाठक, पाठिकाओं से विनम्र निवेदन है कि इस पुस्तक को अवश्य पढ़ें, औरों को पढ़ने दें तथा अपने जीवन में इन बातों को लाकर हम सुख, शान्ति से रहते हुए परमानन्द की प्राप्ति कर लें।
-प्रकाशक
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