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गीता प्रेस, गोरखपुर >> सत्संग के फूल

सत्संग के फूल

राजेन्द्र कुमार धवन

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :190
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1030
आईएसबीएन :81-293-1321-9

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प्रस्तुत है जीवन्मुक्त तत्त्वज्ञ एवं भगवत्प्रेमी महापुरुष के सत्संग से यथाश्रुत तथा यथागृहीत बातें।

Satsang Ke Phool -A Hindi Book by Swami Rajendra Kumar Dhawan - सत्संग के फूल - राजेन्द्र कुमार धवन

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

।।ॐ श्रीपरमात्मने नम:।।

प्राक्कथन

जीवन्मुक्त, तत्त्वज्ञ एवं भगवत्प्रेमी महापुरुष के सत्संग से यथाश्रुत तथा यथागृहीत बातें मैं समय-समय पर अपनी डायरी में लिखता रहा हूँ। उसमें से कुछ बातें ‘ज्ञान के दीप जले’ नाम से प्रकाशित की जा चुकी हैं; जिन्हें पाठकों ने बहुत पसन्द किया है। अब डायरी में लिखित कुछ बातें ‘सत्संग के फूल’ नाम से प्रकाशित की जा रही है। सत्संग-प्रेमी पाठकों से यह आशा है कि वे ‘ज्ञान के दीप जले’ की भाँति प्रस्तुत पुस्तक से भी लाभ उठायेंगे।

विनीत
संकलनकर्ता

।।ॐ श्रीपरमात्मने नम:।।

सत्संग के फूल


पराकृतनमद्बन्धं परं ब्रह्म नराकृति।
सौन्दर्यसारसर्वस्वं वन्दे नन्दात्मजं मह:।।
प्रपन्नपारिजाताय तोत्त्रवेत्रैकपाणये।
ज्ञानमुद्राय कृष्णाय गीतामृतदुहे:नमः।।
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्।
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।।
वंशीविभूषितकरान्नवनीरदाभात्
पीताम्बरादरुणविम्बफलाधरोष्ठात्।
पूर्णेन्दुसुन्दरमुखादरविन्दनेत्रात्
कृष्णात्परं किमपि तत्त्वमहं न जाने।।
हरि: ऊँ नमोऽस्तु परमात्मने नम:।
श्रीगोविन्दाय नमो नम:।
श्रीगुरुचरणकमलेभ्यो नमः।
महात्मभ्यो नम:।
सर्वेभ्यो नमो नम:।


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