नाटक-एकाँकी >> हंसनी हंसनीएंतोन चेखव
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हंसनी मुख्य रूप से कलाकारों के अपने रचनात्मक और व्यक्तिगत जीवन के बीच तालमेल न बैठा पाने की पीढ़ी का लेखा-जोखा है। प्रतिष्ठित अभिनेत्री आर्कदीना स्थापित और लोकप्रिय लेखक त्रिगोरिन के प्रेम के बिना जिन्दा नहीं रह सकती। त्रिगोरिन रचना-कर्म को बेहद नीरस पाता है, मगर लिखने के लिए अभिशप्त है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
हंसनी मुख्य रूप से कलाकारों के अपने रचनात्मक और व्यक्तिगत जीवन के बीच तालमेल न बैठा पाने की पीढ़ी का लेखा-जोखा है। प्रतिष्ठित अभिनेत्री आर्कदीना स्थापित और लोकप्रिय लेखक त्रिगोरिन के प्रेम के बिना जिन्दा नहीं रह सकती। त्रिगोरिन रचना-कर्म को बेहद नीरस पाता है, मगर लिखने के लिए अभिशप्त है। उसे अपनी जड़ता तोड़ने के लिए हर बार नई उत्तेजना की तलाश है और इसकी शिकार होती है - नीना अर्थात आर्कदीना के पुत्र तेपलेव की प्रेमिका। दोनों को नाटक और लेखन के, यानी जीवन के नए मुहावरों की तलाश है। इस जटिल और उलझी हुई थीम को जिस खूबसूरती से चेखव ने नाटक का रूप दिया है वह पूरी दुनिया के नाटकों के इतिहास में अभूतपूर्व है। इस सन्दर्भ में अनुवादक राजेंद्र यादव का कथन है : चेखव की रचनाओं की आत्मीयता, करूणा और ख़ास किस्म की निराश उदासी (लगभग आत्मदय जैसी) मुझे बहुत छूती है। मैं उसके प्रभाव से लगभग मोहाच्छन्न था। उसी श्रद्धा से मैंने इस नाटकों को हाथ लगाया था। रूसी भाषा नहीं जनता था, मगर अधिक से अधिक ईमानदारी से उसके नाटकों की मौलिक शक्ति तक पहुँचाना चाहता था। इसलिए तीन अनुवादों को सामने रखकर एक-एक वाक्य पढता और मूल को पकड़ने कि कोशिश करता। आधार बनाया मॉस्को के अनुवाद को। बाद में सुना, अनुवादों को पाठकों ने पसंद किया, अनेक रंग-संस्थानों और रेडियो इत्यादि ने इन्हें अपनाया, पाठ्यक्रम में भी उन्हें लिया गया।
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