नई पुस्तकें >> दयारे हयात में दयारे हयात मेंकुमार नयन
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गजलें इश्को-मुहब्बत से सराबोर हैं तो हालाते-हाजरा की मंजरकशी करती हुई अवाम की दुखती रंगों को छूती भी हैं। अपने वक़्त और समाज के तकाजों को पूरा करती हुई नाइंसाफी, जुल्मो-सितम, बंदिशों के खिलाफ चुप्पी तोड़ने की शाइस्तगी से तरफदारी भी करती हैं।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
अपने एह्सासात से कारईन व् सामईन को रफ्ता-रफ्ता मदहोश बना देनेवाले कुमार नयन की शायरी के कई रंग हैं। उनकी गजलें इश्को-मुहब्बत से सराबोर हैं तो हालाते-हाजरा की मंजरकशी करती हुई अवाम की दुखती रंगों को छूती भी हैं। अपने वक़्त और समाज के तकाजों को पूरा करती हुई नाइंसाफी, जुल्मो-सितम, बंदिशों के खिलाफ चुप्पी तोड़ने की शाइस्तगी से तरफदारी भी करती हैं। गजल कहनेवालों की भीड़ में कुमार नयन अपनी जुबान और शेरो के मफहूम से पहचाने जा सकते हैं। दरअस्ल इनकी जुबान खालिस हिन्दवी जुबान है और शायर भी खालिस गंवई हिन्दुस्तानी जिसका लहजा सरल व् सहज होने के बावजूद अंदाजे-बयाँ काबिले तारीफ और ख़यालात दिलों में हलचल मचानेवाले हैं।
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