गीता प्रेस, गोरखपुर >> एक लोटा पानी एक लोटा पानीराजेन्द्र देव सेंगर
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प्रस्तुत है एक रोचक कहानी एक लोटा पानी....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
एक लोटा पानी
(1)
चैत का महीना था। ग्वालियर राज्य का मशहूर डाकू परसराम अपने अरबी घोड़े पर
चढ़ा हुआ जिला दमोहके देहात में होकर कहीं जा रहा था। लकालक दोपहरी थी।
प्यास के कारण परसराम का गला सूख रहा था। कोई तालाब, नदी या गाँव दिखायी न
देता था। चलते-चलते एक चबूतरा मिला, जिस पर एक शिवलिंग रखा था। छोटे और
कच्चे चबूतरे पर बरसात के पानी ने छोटे-छोटे गड्ढे कर दिये थे। इसलिये
महादेवजी की मूर्ति कुछ तिरछी सी हो रही थी। यह देख परसराम घोड़े से उतरा
और उसे एक पेड़ से बाँधकर अपनी तलवार से महादेवजी की पिण्डी को ठीक
बिठालने लगा। परसराम बोला—‘महादेव गुरुजी हैं। परशुराम के
गुरु थे, इसलिए मेरे भी गुरु हैं। वे भी ब्राह्मण थे, मैं भी ब्राह्मण
हूँ। उन्होंने अमीरों का नाश किया था और गरीबों का पालन किया था, वही मैं
भी कर रहा हूँ। मूर्ख लोग मुझे डाकू कहते हैं।
धनवान् से जबरन धन लेकर दीनों का पालन करना क्या डाकूपन है ? है तो बना रहे। ग्वालियर राज्य ने मेरे लिये पाँच हजार का इनामी वारंट जारी किया है और भारत-सरकार ने पचीस हजार का। मेरी गिरफ्तारी के लिये तीस हजार का इनाम छप चुका है। वे लोग अमीरों के पालक और गरीबों के घालक हैं। इसलिए मुझे डाकू कहते हैं। डाकू वे हैं या मैं ? इसका निर्णय कौन करेगा ? खैर कोई परवाह नहीं। जबतक शंकर गुरु का पंजा मेरी पीठपर है तब तक कोई परसराम को गिरफ्तार नहीं कर सकता। लेकिन क्या मैं आज प्यास के मारे इस जंगल में मर जाऊँगा ? मेरे पंद्रह साथी—जो सब पढ़े-लिखे और बहादुर हैं—अपने—अपने अरबी घोड़ों पर चढ़े मुझे खोज रहे होंगे। जब वे मुझे इस जंगल में मरा हुआ पायेंगे, तब वे नेत्रहीन होकर बड़े दुखी होंगे। बाबा ! गुरुदेव ! क्या एक लोटा पानी के बिना आप मेरी जान ले लेंगे ?’
तबतक एक बुढ़िया वहाँ आयी। उसके हाथ में एक लोटा जल था और लोटे के ऊपर एक कटोरी थी, जिसमें मिठाई रखी थी।
परसराम—बूढ़ी माई ! तुम कहाँ रहती हो ?
बुढ़िया—थोड़ी दूर पर सेखूपुर गाँव है। बागों में बसा है, इसलिये दिखायी नहीं देता। वहीं मेरा घर है। जाति की अहीर हूँ बेटा !
परसराम—यहाँ क्यों आयी हो ?
चबूतरे पर पानी और मिठाई रखकर बुढ़िया बैठ गयी और रोने लगी। परसराम ने जब बहुत समझाया तब वह कहने लगी—‘बेटा ! मौत के दिन पूरे करती हूँ। घर में एक लड़का था और बहू थी। मेरा बेटा तुम्हारी ही उमर का था। उसी ने यह चबूतरा बनाया था और कहीं से लाकर उसी ने महादेव यहाँ रखे थे। रोजाना पूजा करता था। परसाल इस गाँव में कलमुही ताऊन (प्लेग) आयी। बेटा और बहू दोनों एक दस साल की कन्या छोड़कर उड़ गये। रोने का लिये मैं रह गयी। जबसे बेटा मरा, तबसे मैं रोज एक लोटा पानी चढ़ा जाती हूँ और रो जाती हूँ। इस साल वैशाख में नातिन चम्पा का विवाह है। घर में कुछ नहीं है। न जानें, कैसे महादेव बाबा चम्पा का विवाह करेंगे।’
परसराम—महादेव बाबा चम्पा का विवाह खूब करेंगे। तुम यह पानी मुझे पिला दो, बड़ी प्यास लगी है।
बुढ़िया—पी लो बेटा, पी लो। मिठाई भी खा लो। यह पानी जो तुम पी लोगे तो मैं समझूँगी कि महादेवजी पर चढ़ गया। आत्मा सो परमात्मा। मैं फिर चढ़ा जाऊँगी। पी लो बेटा, पी लो, पहले यह मिठाई खा लो।
इतना कहकर बुढ़िया ने पानी का लोटा और मिठाई की कटोरी परसराम के समाने रख दिये। मिठाई खाकर और शीतल स्वच्छ जल पीकर परसराम बोले—‘चम्पा का विवाह कब होगा माई !’
बुढ़िया—वैशाख के उँजेरे पाखकी पञ्चमी को टीका है। केसुरीपुर से बारात आयेगी।
परसराम—विवाह के लिये तुम चिन्ता कुछ मत करना। तुम्हारी चम्पा का विवाह महादेव ही करेंगे।
बुढ़िया—तुम कौन हो बेटा ? तुम्हारी हजारी उमर हो। गाँव तक चलो तो तुमको कुछ खिलाऊँ। भूखे मालूम होते हो।
परसराम—भूखा तो हूँ, पर गाँव नहीं जा सकता। मेरा नाम परसराम है और लोग मुझे डाकू कहते हैं। आगरे के कप्तान यंग साहब, जिन्होंने सुल्ताना डाकू को गिरफ्तार किया था, तीस सिपाहियों के साथ मेरे पीछे लगे हुए हैं। मेरे साथी छूट गये हैं, इसलिये मैं गाँव नहीं जा सकता। जिस दिन चम्पा का विवाह होगा, उस दिन तुम्हारे गाँव में पाँच मिनट के लिये आऊँगा।
बुढ़िया—तुम डाकू तो मालूम नहीं पड़ते—देवता मालूम पड़ते हो।
घोड़े पर सवार होकर परसरामने कहा—‘अब ऐसा ही उलटा जमाना आया है माई ! उदार और बहादुर को डाकू कहा जाता है और महलों में बैठकर दिनदहाड़े गरीबों को लूटनेवालों को रईस कहा जाता है। धर्मात्मा भीख माँगते हैं, पापी लोग हुकूमत करते हैं। पतिव्रताएं उघारी फिरती हैं, छिनालों के पास रेशमी साड़ियाँ हैं। कलियुग है न ! मैं जाता हूँ। मेरा नाम याद रखना पञ्चमी को आऊँगा।’
परसराम चले गये। बुढ़ियाने भी घरकी राह ली। महादेवजी पर जल चढ़ाकर उसने चम्पासे परसरामके मिलने की सारी कहानी बयान कर दी; गाँव का मुखिया भी वहीं खड़ा था उसने भी सारा हाल सुना। मुखिया ने सोचा—मेरा भाग जग गया, इनाम का बड़ा हिस्सा मैं पाऊँगा। थाने में जाकर रिपोर्ट लिखायी कि ‘वैशाख शुक्ल पक्ष की पञ्चमी के दिन परसराम सेखूपुर में चम्पा के विवाह में शामिल होने आयेगा। पुलिस के द्वारा यह समाचार यंग साहबको मालूम करा देना चाहिये। अगर उस रोज डाकू परसराम गिरफ्तार न हुआ तो फिर कभी न हो सकेगा।’
धनवान् से जबरन धन लेकर दीनों का पालन करना क्या डाकूपन है ? है तो बना रहे। ग्वालियर राज्य ने मेरे लिये पाँच हजार का इनामी वारंट जारी किया है और भारत-सरकार ने पचीस हजार का। मेरी गिरफ्तारी के लिये तीस हजार का इनाम छप चुका है। वे लोग अमीरों के पालक और गरीबों के घालक हैं। इसलिए मुझे डाकू कहते हैं। डाकू वे हैं या मैं ? इसका निर्णय कौन करेगा ? खैर कोई परवाह नहीं। जबतक शंकर गुरु का पंजा मेरी पीठपर है तब तक कोई परसराम को गिरफ्तार नहीं कर सकता। लेकिन क्या मैं आज प्यास के मारे इस जंगल में मर जाऊँगा ? मेरे पंद्रह साथी—जो सब पढ़े-लिखे और बहादुर हैं—अपने—अपने अरबी घोड़ों पर चढ़े मुझे खोज रहे होंगे। जब वे मुझे इस जंगल में मरा हुआ पायेंगे, तब वे नेत्रहीन होकर बड़े दुखी होंगे। बाबा ! गुरुदेव ! क्या एक लोटा पानी के बिना आप मेरी जान ले लेंगे ?’
तबतक एक बुढ़िया वहाँ आयी। उसके हाथ में एक लोटा जल था और लोटे के ऊपर एक कटोरी थी, जिसमें मिठाई रखी थी।
परसराम—बूढ़ी माई ! तुम कहाँ रहती हो ?
बुढ़िया—थोड़ी दूर पर सेखूपुर गाँव है। बागों में बसा है, इसलिये दिखायी नहीं देता। वहीं मेरा घर है। जाति की अहीर हूँ बेटा !
परसराम—यहाँ क्यों आयी हो ?
चबूतरे पर पानी और मिठाई रखकर बुढ़िया बैठ गयी और रोने लगी। परसराम ने जब बहुत समझाया तब वह कहने लगी—‘बेटा ! मौत के दिन पूरे करती हूँ। घर में एक लड़का था और बहू थी। मेरा बेटा तुम्हारी ही उमर का था। उसी ने यह चबूतरा बनाया था और कहीं से लाकर उसी ने महादेव यहाँ रखे थे। रोजाना पूजा करता था। परसाल इस गाँव में कलमुही ताऊन (प्लेग) आयी। बेटा और बहू दोनों एक दस साल की कन्या छोड़कर उड़ गये। रोने का लिये मैं रह गयी। जबसे बेटा मरा, तबसे मैं रोज एक लोटा पानी चढ़ा जाती हूँ और रो जाती हूँ। इस साल वैशाख में नातिन चम्पा का विवाह है। घर में कुछ नहीं है। न जानें, कैसे महादेव बाबा चम्पा का विवाह करेंगे।’
परसराम—महादेव बाबा चम्पा का विवाह खूब करेंगे। तुम यह पानी मुझे पिला दो, बड़ी प्यास लगी है।
बुढ़िया—पी लो बेटा, पी लो। मिठाई भी खा लो। यह पानी जो तुम पी लोगे तो मैं समझूँगी कि महादेवजी पर चढ़ गया। आत्मा सो परमात्मा। मैं फिर चढ़ा जाऊँगी। पी लो बेटा, पी लो, पहले यह मिठाई खा लो।
इतना कहकर बुढ़िया ने पानी का लोटा और मिठाई की कटोरी परसराम के समाने रख दिये। मिठाई खाकर और शीतल स्वच्छ जल पीकर परसराम बोले—‘चम्पा का विवाह कब होगा माई !’
बुढ़िया—वैशाख के उँजेरे पाखकी पञ्चमी को टीका है। केसुरीपुर से बारात आयेगी।
परसराम—विवाह के लिये तुम चिन्ता कुछ मत करना। तुम्हारी चम्पा का विवाह महादेव ही करेंगे।
बुढ़िया—तुम कौन हो बेटा ? तुम्हारी हजारी उमर हो। गाँव तक चलो तो तुमको कुछ खिलाऊँ। भूखे मालूम होते हो।
परसराम—भूखा तो हूँ, पर गाँव नहीं जा सकता। मेरा नाम परसराम है और लोग मुझे डाकू कहते हैं। आगरे के कप्तान यंग साहब, जिन्होंने सुल्ताना डाकू को गिरफ्तार किया था, तीस सिपाहियों के साथ मेरे पीछे लगे हुए हैं। मेरे साथी छूट गये हैं, इसलिये मैं गाँव नहीं जा सकता। जिस दिन चम्पा का विवाह होगा, उस दिन तुम्हारे गाँव में पाँच मिनट के लिये आऊँगा।
बुढ़िया—तुम डाकू तो मालूम नहीं पड़ते—देवता मालूम पड़ते हो।
घोड़े पर सवार होकर परसरामने कहा—‘अब ऐसा ही उलटा जमाना आया है माई ! उदार और बहादुर को डाकू कहा जाता है और महलों में बैठकर दिनदहाड़े गरीबों को लूटनेवालों को रईस कहा जाता है। धर्मात्मा भीख माँगते हैं, पापी लोग हुकूमत करते हैं। पतिव्रताएं उघारी फिरती हैं, छिनालों के पास रेशमी साड़ियाँ हैं। कलियुग है न ! मैं जाता हूँ। मेरा नाम याद रखना पञ्चमी को आऊँगा।’
परसराम चले गये। बुढ़ियाने भी घरकी राह ली। महादेवजी पर जल चढ़ाकर उसने चम्पासे परसरामके मिलने की सारी कहानी बयान कर दी; गाँव का मुखिया भी वहीं खड़ा था उसने भी सारा हाल सुना। मुखिया ने सोचा—मेरा भाग जग गया, इनाम का बड़ा हिस्सा मैं पाऊँगा। थाने में जाकर रिपोर्ट लिखायी कि ‘वैशाख शुक्ल पक्ष की पञ्चमी के दिन परसराम सेखूपुर में चम्पा के विवाह में शामिल होने आयेगा। पुलिस के द्वारा यह समाचार यंग साहबको मालूम करा देना चाहिये। अगर उस रोज डाकू परसराम गिरफ्तार न हुआ तो फिर कभी न हो सकेगा।’
(2)
चौथे दिन, बिहारी अहीर के दरवाजे पर पाँच गाड़ियाँ आकर खड़ी हुईं। एक में
आटा भरा था। एक में घी, शक्कर और तरकारियाँ भरी थीं। एक गाड़ी में
कपड़े-ही-कपड़े थे, तरह-तरह के नये थानों से वह गाड़ी भरी थी। चौथी गाड़ी
में नये-नये बर्तन भरे थे और पाँचवीं गाड़ी तरह-तरह की पक्की मिठाइयों से
भरी थी। गाड़ीवानों ने सब सामान बिहारी अहीर के घर में भर दिया। लोगों ने
जब यह पूछ था कि ‘यह सामान किसने भेजा ? तब गाड़ीवानों ने कहा
कि
‘हमलोग भेजनेवाले का नाम-धाम कुछ नहीं जानते। हमलोग दमोहके
रहनेवाले
हैं। किरायेपर गाड़ी चलाया करते हैं।
हम लोगों को किराया अदा कर दिया गया। हम लोगों को केवल यही हुक्म है कि यह सामान सेखूपुर के बिहारी अहीर के घर में जबरन भर आवें। बस, और ज्यादा तीन-पाँच हमलोग कुछ नहीं जानते।’ इस विचित्र घटनापर गाँवभर आश्चर्य कर रहा था। केवल मुखिया और बुढ़िया को मालूम था कि यह सब काम परसराम का है। मुखिया ने इस घटना की रिपोर्ट लिखवायी और यह भी लिखाया कि ‘कल पञ्चमी के दिन सुबह को जब चम्पा के फेरे पड़ेंगे, उस समय कन्यादान देने खुद परसराम के आने की उम्मीद है; क्योंकि वह अभी तक खुद नहीं आया है। पाँच मिनट के लिये गाँव में आनेका उसने वचन दिया है। चाहे धरती इधर की उधर हो जाय, पर परसरामका वचन खाली नहीं जा सकता। चौथ की रातमें ही मिस्टर यंग साहब अपने तीस मरकट सिपाहियों के साथ सेखूपुर में आ धमके। उन सबों ने घोड़ों के सौदागरों का भेष बनाया था। मुखिया के दरवाजे पर वे लोग ठहर गये। गाँववालों ने जाना कि घोड़े के सौदागर लोग मेले को जा रहे हैं। मुखिया और चौकीदार के सिवा असली भेद कोई नहीं जानता था।
हम लोगों को किराया अदा कर दिया गया। हम लोगों को केवल यही हुक्म है कि यह सामान सेखूपुर के बिहारी अहीर के घर में जबरन भर आवें। बस, और ज्यादा तीन-पाँच हमलोग कुछ नहीं जानते।’ इस विचित्र घटनापर गाँवभर आश्चर्य कर रहा था। केवल मुखिया और बुढ़िया को मालूम था कि यह सब काम परसराम का है। मुखिया ने इस घटना की रिपोर्ट लिखवायी और यह भी लिखाया कि ‘कल पञ्चमी के दिन सुबह को जब चम्पा के फेरे पड़ेंगे, उस समय कन्यादान देने खुद परसराम के आने की उम्मीद है; क्योंकि वह अभी तक खुद नहीं आया है। पाँच मिनट के लिये गाँव में आनेका उसने वचन दिया है। चाहे धरती इधर की उधर हो जाय, पर परसरामका वचन खाली नहीं जा सकता। चौथ की रातमें ही मिस्टर यंग साहब अपने तीस मरकट सिपाहियों के साथ सेखूपुर में आ धमके। उन सबों ने घोड़ों के सौदागरों का भेष बनाया था। मुखिया के दरवाजे पर वे लोग ठहर गये। गाँववालों ने जाना कि घोड़े के सौदागर लोग मेले को जा रहे हैं। मुखिया और चौकीदार के सिवा असली भेद कोई नहीं जानता था।
(3)
पञ्चमी का सबेरा हुआ परसरामने ज्यों ही घोड़ेपर चढ़ना चाहा, त्यों ही छींक
हुई। एक साथी का नाम था रहीम। बी.ए. पास था। पेशावर का रहनेवाला था। घोड़े
की सवारी में और निशाना लगाने में एक ही था। रहीम ने परसराम को रोकते हुए
कहा—‘कहाँ जा रहे हैं आप ?’
परसराम—सेखूपुर, चम्पा का कन्या दान देने। तुमको तो सब हाल मालूम करा दिया था। रोको मत। रुक नहीं सकता।
रहीम—छींक हुई !
परसराम—मुसलमान होकर भी छींक को मानते हो !
रहीम—बात यह है कि यंग साहब अपने तीस सिपाहियों के साथ इधर ही गये हैं। उन लोगोंने सौदागरों का स्वाँग बनाया है। मगर मेरी नजरको धोखा नहीं दे सकते।
परसराम—घूमने दो। क्या करेगा यंग साहब ?
रहीम—मालूम होता है कि मूर्ख बुढ़िया ने आपके मिलने का हाल अपने गाँव में बयान कर दिया है। पुलिस को आपके जाने का हाल मालूम हो गया है, तभी यंग साहबने मौका देखकर चढ़ाई की है।
परसराम—सेखूपुर, चम्पा का कन्या दान देने। तुमको तो सब हाल मालूम करा दिया था। रोको मत। रुक नहीं सकता।
रहीम—छींक हुई !
परसराम—मुसलमान होकर भी छींक को मानते हो !
रहीम—बात यह है कि यंग साहब अपने तीस सिपाहियों के साथ इधर ही गये हैं। उन लोगोंने सौदागरों का स्वाँग बनाया है। मगर मेरी नजरको धोखा नहीं दे सकते।
परसराम—घूमने दो। क्या करेगा यंग साहब ?
रहीम—मालूम होता है कि मूर्ख बुढ़िया ने आपके मिलने का हाल अपने गाँव में बयान कर दिया है। पुलिस को आपके जाने का हाल मालूम हो गया है, तभी यंग साहबने मौका देखकर चढ़ाई की है।
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