गीता प्रेस, गोरखपुर >> वीर बालक वीर बालकहनुमानप्रसाद पोद्दार
|
1 पाठकों को प्रिय 357 पाठक हैं |
प्रस्तुत अंक में 19 वीर बालकों के छोटे-छोटे सचित्र चरित प्रकाशित किये गये है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
श्रीहरि:
निवेदन
‘कल्याण’के ‘बालक-अंग’ में
प्रकाशित 19 वीर
बालकों के छोटे-छोटे सचित्र चरित इस पुस्तिका में बालकों के लिये ही
प्रकाशित किये गये हैं। जिन-जिन पुस्तकों के आधार पर चरित लिखे गये है,
उन-उनके लेखकों के हम हृदय से कृतज्ञ हैं।
-हनुमानप्रसाद पोद्दार
।।श्रीहरि:।।
वीर बालक लव-कुश
मर्यादापुरुषोत्तम भगवान् श्रीराम ने मर्यादा की रक्षा के लिये
पतिव्रताशिरोमणि श्रीजानकी जी का त्याग कर दिया। श्रीराम और जानकी परस्पर
अभिन्न हैं। वे दोनों सदा एक हैं। उनका यह अलग होना और मिलना तो एक
लीलामात्र है। भगवान् श्रीराम ने अपने यश की रक्षा के लोभ से, अपयश के भय
से या किसी कठोरतावश श्रीजानकीजी का त्याग नहीं किया था। वे जानते थे कि
श्रीसीता वियोग में उन्हें कम दु:ख नहीं होता था। यदि सीता-त्याग में कोई
कठोरता है तो वह जितनी सीता जी के प्रति है, उतनी ही या उससे भी अधिक
श्रीराम की अपने प्रति भी है, लेकिन भगवान् का अवतार संसार में मर्यादा की
स्थापना के लिये हुआ था। यदि आदर्श पुरुष अपने आचरण में साधारण ढीला भी
रहने दें तो दूसरे लोग उनका उदाहरण लेकर बड़े-बड़े दोष करने लगते हैं।
विवश होकर पवित्रता से श्रीसीताजी को लंका में रावण के यहाँ बन्दी बनाकर
अशोकवाटिका में रहना पड़ा था। अब कुछ लोग इसी बात को लेकर अनेक प्रकार की
बातें कहने लगे थे। ‘कहीं इसी बात को लेकर स्त्रियाँ अपने आचरण
का
समर्थन न करने लगें और पुरुष भी आचरण बिगाड़ न लें।’
|
विनामूल्य पूर्वावलोकन
Prev
Next
Prev
Next
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book