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भ्रष्टाचार

नरेन्द्र

प्रकाशक : अनुराधा प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :120
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 10155
आईएसबीएन :9789382339366

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सत्ता की भूख और पैसे की प्यास समानुसार भिन्न-भिन्न प्रकार के तरीकों से मिटाई-बुझाई जाती है। स्वार्थ की अति से क्रमशः समाज में दुराचार, व्यापार में लालची लाभ व सरकार में निन्दनीय भ्रष्टाचार पैदा होता है।

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

सत्ता की भूख और पैसे की प्यास समानुसार भिन्न-भिन्न प्रकार के तरीकों से मिटाई-बुझाई जाती है। स्वार्थ की अति से क्रमशः समाज में दुराचार, व्यापार में लालची लाभ व सरकार में निन्दनीय भ्रष्टाचार पैदा होता है।

समकालीन नकारात्मक एवं उथली राजनीतिक आपा-धापी में भ्रष्टाचार के आरोप-प्रत्यारोप का इतना इस्तेमाल हुआ कि जैसे भ्रष्टाचार प्रशासन चला रहा है, सरकार तो निमित्त मात्र है। लेकिन यह पूरा सच नहीं है। सौभाग्य से देश व समाज आगे ही बढ़ रहे हैं।

सच्चाई को समग्रता से प्रस्तुत करने के प्रयास में पुस्तक में नाटक, उपन्यास एवं कहानी की मिली-जुली विधा का प्रयोग किया गया है। लेखक को आशा है पाठक हँसेगा भी और सोचेगा भी।

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