नई पुस्तकें >> और झाड़ू धन्य हो गई और झाड़ू धन्य हो गईकुशलेन्द्र श्रीवास्तव
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समाज की समसामायिक बाह्य एवं अन्तर्दशा से सम्बन्धित अनेक समस्याओं को रेखांकित किया है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
और झाड़ू धन्य हो गई शीर्षक व्यंग्य संग्रह के अन्तर्गत 28 लेखों में देश तथा समाज की समसामायिक बाह्य एवं अन्तर्दशा से सम्बन्धित अनेक समस्याओं को रेखांकित किया है। व्यक्ति और समाज दो अलग-अलग सत्ता नहीं हैं वरन व्यक्तियों के सभ्य समूह का नाम समाज है। समाज में सभी लोग अपनी-अपनी बात को अपने-अपने तरीके से कहते हैं। इस विधा का उद्देश्य भी अन्य विधाओं की भांति व्यक्ति और समाज की संवेदना को जगाना है। व्यंग्य संग्रह में हास-परिहास के साथ सुधारवादी स्वर प्रमुखता से छिपा हुआ है।