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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन

आध्यात्मिक प्रवचन

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1007
आईएसबीएन :81-293-0838-x

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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।


पत्र पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।
तदहं भक्त्युपहृतमश्चामि प्रयतात्मनः।।

(गीता ९।२६)

जो कोई भक्त मेरे लिये प्रेमसे पत्र, पुष्प, फल, जल आदि अर्पण करता है, उस शुद्धबुद्धि निष्काम प्रेमी भक्तका प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ वह पत्र-पुष्पादि मैं सगुणरूपसे प्रकट होकर प्रीतिसहित खाता हूँ।
अम्बरीषने तुलसीपत्र भगवान्के अर्पण किया। अम्बरीषके द्वारा दुर्वासाजीको भोजन कराये बिना पारणकी बात जाननेपर दुर्वासाजीने अम्बरीषको मारनेके लिये कृत्या छोड़ी। भगवान्ने सुदर्शन चक्र छोड़ दिया। दुर्वासाजीकी रक्षा अम्बरीषकी शरण जानेपर ही हुई। द्रौपदीसे शाकका एक पत्ता लेकर खाकर डकार ली सारे विश्वको तृप्त कर दिया। गजेन्द्रको तालाबमें एक पुष्प मिला बस अर्पण करते ही भगवान् प्रकट हो गये। भीलनीने बेर खिलाये। रन्तिदेवने जल दिया। भगवान् तो इससे भी सुगम बताते हैं।

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    अनुक्रम

  1. सत्संग की अमूल्य बातें

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