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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन

आध्यात्मिक प्रवचन

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1007
आईएसबीएन :81-293-0838-x

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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।


ध्यानमें मस्त रहता है। शरीर में न ममता है न अहंता है। अज्ञानी जैसे दूसरेको अपने शरीरसे अलग देखता है ऐसे ही वह अपने शरीरसे अलग रहता है, आकाशकी तरह अपनेको सब जगह व्यापक देखता है। संसारको भुलानेमें कोई परिश्रम नहीं, याद करनेमें कुछ परिश्रम होता है। सुसुप्तिमें जैसे हम संसारको भूल जाते हैं ऐसे ही वह जाग्रत अवस्थामें भूल जाता है। उसके बाद वास्तव में उसकी कोई दृष्टि नहीं रहती। संसारका अत्यंताभाव हो गया है। इसके बादकी अवस्थामें जीवका कोई सम्बन्ध उस अन्त:करणसे नहीं रहता। खाली घर रह जाता है।

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    अनुक्रम

  1. सत्संग की अमूल्य बातें

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