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गीता प्रेस, गोरखपुर >> प्रेम में विलक्षण एकता

प्रेम में विलक्षण एकता

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1004
आईएसबीएन :00000

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प्रेम एक दिव्य भाव है इस विलक्षण भाव के द्वारा भक्तों ने भगवान को वश में किया है। इन तेरह लेखों के माध्यम से महापुरुष ने संसार से विरति और भगवान् से रति होने के लिए सरल,सुबोध भाषा में उपयुक्त साधन करने की प्रेरणा दी है।

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