विभिन्न रामायण एवं गीता >> श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1 श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1महर्षि वेदव्यास
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भगवद्गीता की पृष्ठभूमि
अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः।
स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसंकरः।।41।।
स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसंकरः।।41।।
हे कृष्ण! पाप के अधिक बढ़ जाने से कुल की स्त्रियाँ अत्यन्त दूषित हो
जाती हैं और हे वार्ष्णेय! स्त्रियों के दूषित हो जाने पर वर्णसंकर
उत्पन्न होता है।।41।।
अपने तर्क को आगे बढ़ाते हुए अर्जुन कहता है, धर्म में प्रवृत्त न होने से कुल के लोगों पाप में प्रवृत्त होते हैं। पाप में प्रवृत्त व्यक्ति स्वयं भी दूषित होते हैं तथा भिन्न कुल की स्त्रियों के साथ संसर्ग से वर्णसंकर सन्तान उत्पन्न करते हैं।
अपने तर्क को आगे बढ़ाते हुए अर्जुन कहता है, धर्म में प्रवृत्त न होने से कुल के लोगों पाप में प्रवृत्त होते हैं। पाप में प्रवृत्त व्यक्ति स्वयं भी दूषित होते हैं तथा भिन्न कुल की स्त्रियों के साथ संसर्ग से वर्णसंकर सन्तान उत्पन्न करते हैं।
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