लेखक:
शरद सिंह
शरद सिंह 29 नवम्बर 1963 को जन्मी शरद सिंह किशोरावस्था से ही साहित्य सृजन से जुड़ी हैं। खजुराहो की मूर्तिकला पर पी-एच.डी. करने वाली सुश्री सिंह ने आकाशवाणी, दूरदर्शन एवं यू.जी.सी. के लिए पटकथा लेखन, धारावाहिकों का लेखन एवं फिल्म संपादन किया है। शरद सिंह की कहानियों एवं उपन्यासों में नए कथ्य की खोज व कहन मिलती है। वह समाज में उपस्थित उन बिन्दुओं पर लिखना पसन्द करती हैं जो प्रायः अछूते रह जाते हैं। स्त्री जीवन का सूक्ष्म विश्लेषण इनके कथानकों की एक विशेषता है। इनकी कृतियों में उपस्थित स्त्री-विमर्श पूर्वाग्रहमुक्त और अन्वेषण के रूप में उभर कर सामने आता है, जो वैचारिक अर्थवत्ता के साथ ही साहित्यिक मानक पर भी खरा उतरता है। ‘पिछले पन्ने की औरतें’ एवं ‘पचकौड़ी’ बहुचर्चित उपन्यास, ‘तीली-तीली आग’ एवं ‘बाबा फरीद अब नहीं आते’ तथा स्त्री विमर्श पर इनकी नवीनतम पुस्तक ‘पत्तों में कैद औरतें’ सहित अब तक इनकी लगभग तीस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। डॉ. शरद सिंह को राष्ट्रीय पं. गोविंद बल्लभ पंत सम्मान, परिधि सम्मान, कस्तूरीदेवी चतुर्वेदी लोकभाषा लेखिका सम्मान, अंबिका प्रसाद दिव्य रजत अलंकरण सम्मान तथा लीडिंग लेडी आफ मध्यप्रदेश के सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है। संपर्क : एम-111, शांति विहार, रजाखेड़ी, सागर-470004 (मध्य प्रदेश) |
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पिछले पन्ने की औरतेंशरद सिंह
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छिपी रहती है हर औरत के भीतर एक और औरत, लेकिन लोग अकसर देखते हैं सिर्फ बाहर की औरत आगे... |
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बुंदेली लोककथाएँशरद सिंह
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श्रेष्ठ सिक्ख कथाएँशरद सिंह
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