जन्म : 30 नवंबर, 1944, अलीगढ़ जिले के ‘सिकुर्रा’ गाँव में।
आरम्भिक जीवन : जिला झाँसी के ‘खिल्ली’ गाँव में।
शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी साहित्य) बुंदेलखंड कॉलेज, झाँसी।
साहित्यिक : नब्बे के दशक में जिन रचनाकारों ने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई और जिन्हें पाठकों ने भी हाथों-हाथ लिया, मैत्रेयी पुष्पा का नाम उनमें प्रमुख है। बहुत समय नहीं बीता, और आज वे हिन्दी साहित्य-परिदृश्य की एक महत्त्वपूर्ण उपस्थिति हैं। उन्होंने हिन्दी कथा-धारा को वापस गाँव की ओर मोड़ा और कई अविस्मरणीय चरित्र हमें दिए। इन चरित्रों ने शहरी मध्यवर्ग को उस देश की याद दिलाई जो धीरे-धीरे शब्द की दुनिया से गायब हो चला था। ‘इदन्नमम्’ की मंदा, ‘चाक’ की सारंग, ‘अल्मा कबूतरी’ की अल्मा और ‘झूला नट’ की शीलो, ऐसे अनेक चरित्र हैं जिन्हें मैत्रेयी जी ने अपनी समर्थ दृश्यात्मक भाषा और गहरे जुड़ाव के साथ आकार दिया है।
सम्मान/पुरस्कार : ‘सार्क लिटरेरी अवार्ड’ और ‘द हंगर प्रोजेक्ट’ द्वारा दिए गए ‘सरोजनी नायडू पुरस्कार’ के अतिरिक्त अनेक राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक पुरस्कारों से सम्मानित।
कृतियाँ :
उपन्यास : बेतवा बहती रही, इदन्नमम, चाक, झूला नट, अल्मा कबूतरी, विजन, अगनपाखी, कही ईसुरी फाग, त्रिया हठ।
कहानी संग्रह : चिह्नार : (अपना-अपना आकाश, बेटी, सहचर, बहेलिये, मन नाँहि दस-बीस, हवा बदल चुकी है, आक्षेप, कृतज्ञ, भँवर, सफर के बीच, केतकी, चिह्नार, मैं सोचती हूँ कि...।), गोमा हँसती है, ललमनियाँ तथा अन्य कहानियाँ : (रिजक, पगला गई है भागवती!, छाँह, बोझ, ललमनियाँ, बिछुड़े हुए..., बारहवीं रात, बेटी, सेंध, सिस्टर, तुम किसकी हो बिन्नी?।), दस प्रतिनिधि कहानियाँ : (फैसला, तुम किसकी हो बिन्नी?, उज्रदारी, छुटकारा, गोमा हँसती है, बिछुड़े हुए..., पगला गई है भागवती!..., ताला खुला है पापा, रिजक, राय प्रवीण।)।
आत्मकथा : कस्तूरी कुंडल बसै, गुड़िया भीतर गुड़िया।
स्त्री विमर्श : खुली खिड़कियाँ, सुनो, मालिक सुनो।
नाटक : मंदाक्रान्ता
विशेष :
• फैसला कहानी पर टेलीफिल्म : वसुमती की चिट्ठी।
• ‘इदन्नमम्’ उपन्यास पर आधारित साँग एंड ड्रामा डिवीजन द्वारा निर्मित छायाचित्र ‘संक्रांति’।