लोगों की राय

लेखक:

गिरीश कारनाड
जन्म : 3 मई, 1938, माथेरान (महाराष्ट्र)।

मातृ भाषा कन्नड़। गणित की सर्वोच्च परीक्षा में सफल होकर ‘रोड्स स्कॉलर’ के रूप में ऑक्सफोर्ड गए।

1963 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, मद्रास में नौकरी, 1970 में ‘भाभा फैलोशिप’ नौकरी से त्याग-पत्र और स्वतंत्र लेखन की शुरुआत। पहला नाटक ययाति 1938 में छपा और चर्चा का विषय बना। तुग़लक के लेखन-प्रकाशन और बहुभाषी अनुवादों-प्रदर्शनों से राष्ट्रीय स्तर के नाटककार के रूप में प्रतिष्ठा। 1971 में हयवदन का प्रकाशन, अभिमंचन। पूना के फिल्म-संस्थान में प्रधानाचार्य, त्याग-पत्र और इस नए सशक्त अभिव्यक्ति-माध्यम के प्रति दिलचस्पी। सन् 1988 से कुछ वर्ष पहले तक संगीत नाटक अकादेमी, नई दिल्ली के अध्यक्ष रहे।

संस्कार, वंशवृक्ष, काडू, अंकुर, निशान्त, स्वामी और गोधूलि जैसी राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत एवं प्रशंसित फिल्मों में अभिनय-निर्देशन। बलि नामक नए मौलिक नाटक के रचनाकार, मृच्छकटिक पर आधारित फिल्मालेख, उत्सव के लेखन-निर्देशन तथा एक लोकप्रिय दूरदर्शन धारावाहिक के महत्त्वपूर्ण अभिनेता के रूप में बहुचर्चित।

सम्मान : तुग़लक के लिए संगीत नाटक अकादेमी पुरस्कार, हयवदन के लिए कमलादेवी चट्टोपाध्याय पुरस्कार, रक्तकल्याण के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार तथा साहित्य में समग्र योगदान के लिए भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार।

सम्प्रति : स्वतंत्र लेखन।

कृतियाँ : ययाति, तुग़लक, हयवदन, अंजुमल्लिगे, हित्तिना हुंजा, नागमण्डल, रक्त कल्याण (तलेदण्ड), अग्नि और बरखा (अग्नि मत्तु माले)।

हयवदन

गिरीश कारनाड

मूल्य: Rs. 300

  आगे...

 

12  View All >>   11 पुस्तकें हैं|