लेखक:
अशोक वाजपेयी
अशोक वाजपेयी जन्म : 16 जनवरी, 1941, दुर्ग (मध्य प्रदेश)। शिक्षा : सागर विश्वविद्यालय से बी.ए. और सेंट स्टीवेंस कॉलेज, दिल्ली से अंग्रेजी में एम.ए.। कृतियाँ : ‘शहर अब भी संभावना है’, ‘एक पतंग अनंत में’, ‘अगर इतने से’, ‘कहीं नहीं वहीं’, ‘समय के पास समय’, ‘इबारत से गिरी मात्राएँ’, ‘दुख चिट्ठीरसा है’, ‘कहीं कोई दरवाज़ा’, ‘तत्पुरुष’, ‘बहुरि अकेला’, ‘थोड़ी-सी जगह’, ‘घास में दुबका आकाश’, ‘आविन्यों’, ‘जो नहीं है’, ‘अभी कुछ और’, ‘नक्षत्रहीन समय में’, ‘कम से कम’ प्रमुख संग्रहों में हैं। कविता के अलावा आलोचना की ‘फिलहाल’, ‘कुछ पूर्वग्रह’, ‘समय से बाहर’, ‘सीढिय़ाँ शुरू हो गई हैं’, ‘कविता का गल्प’, ‘कवि कह गया है’, ‘कविता के तीन दरवाज़े’ आदि कृतियाँ प्रकाशित। |
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कहीं कोई दरवाजाअशोक वाजपेयी
मूल्य: $ 12.95 यह संग्रह एक वरिष्ठ कवि की एक अधसदी से लम्बी कविता-यात्रा का एक नया और भरोसेमन्द मुकाम है। आगे... |
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कहीं नहीं वहींअशोक वाजपेयी
मूल्य: $ 10.95
अशोक बाजपेई की गद्य कविताएँ। आगे... |
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किस भूगोल में किस सपने मेंअशोक वाजपेयी
मूल्य: $ 29.95 किस भूगोल में किस सपने में आगे... |
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कुछ पूर्वग्रहअशोक वाजपेयी
मूल्य: $ 10.95 पिछले वर्षो में हिंदी आलोचना में जो नाम छाए रहे हैं उनमे एक नाम निश्चय ही अशोक वाजपेयी का है कविता के लिए उनका पूर्वग्रह अब कुख्यात ही है। आगे... |
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कुछ रफू कुछ थिगडेअशोक वाजपेयी
मूल्य: $ 10.95 कुछ रफू कुछ थिगडे यह श्री अशोक वाजपेयी जी का ग्यारहवाँ कविता संग्रह है। आगे... |
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खुल गया है द्वार एकअशोक वाजपेयी
मूल्य: $ 14.95 यह चयन हिंदी के बृहत्तर पाठक-समुदाय को पसंद आएगा, क्योंकि यह उसी को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। आगे... |
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घास में दुबका आकाशअशोक वाजपेयी
मूल्य: $ 7.95 घास में दुबका आकाश आगे... |
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तत्पुरुषअशोक वाजपेयी
मूल्य: $ 14.95 एक अंगभंग समय में, अशोक वाजपेयी की ये नयी कविताएँ, थोड़े से आदमी की पूरी मानवीयता की सम्भावना का सत्यापन हैं। आगे... |
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नक्षत्रहीन समय मेअशोक वाजपेयी
मूल्य: $ 13.95
अपनी कविता के मूल स्वर और सरोकार पर अड़े रहे इस कवि ने हर बार अपनी कविता के संसार में कुछ ऐसा शामिल किया, खोजा है जो पहले नहीं था। इस बार समकालीन राजनीति में जो उथल-पुथल हुई है उसके प्रतिरोध के रूप में उनकी कविता खड़ी हुई है। आगे... |
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नयी सदी के लिए चयन : पचास कविताएँअशोक वाजपेयी
मूल्य: $ 1.95 नयी सदी के लिए चयन : पचास कविताएँ आगे... |