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इतिहास और राजनीति >> संसद में मेरी बात

संसद में मेरी बात

रामगोपाल यादव

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :480
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 9568
आईएसबीएन :9788126729135

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

इस पुस्तक का नाम है - ‘संसद में मेरी बात’ लेकिन यदि आप इसे ध्यान से पढ़ें तो आप कहेंगे कि इसका नाम होना चाहिए था - ‘देश की बात’। प्रो. रामगोपाल यादव ने लगभग 40 विषयों पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। 40 तो शीर्षक भर हैं। एक-एक शीर्षक में कई-कई मुद्दे हैं। हर मुद्दे पर उन्होंने अपनी बेबाक राय रखी है। शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबी, खेती, हिन्दी, विदेश नीति, राष्ट्रीय सुरक्षा, आरक्षण जैसे बुनियादी मुद्दों पर उन्होंने अपनी दो-टूक बात तो कही ही है, तात्कालिक महत्त्व के कई प्रश्नों पर उन्होंने अनेक रचनात्मक सुझाव भी रखे हैं।

राजनीतिशास्त्र के अध्येता और अध्यापक रहने के अनुभव ने भाषणों को गम्भीर और तर्कसम्मत भी बनाया है। उनके भाषणों को पढऩे पर आप आसानी से समझ जाएँगे कि एक औसत नेता और एक विद्वान नेता में क्या फर्क होता है। इस संकलन में आप जब गांधी, लोहिया, अम्बेडकर आदि के साथ-साथ सुकरात, अरस्तू, थॉमस हिल ग्रीन, जॉन स्टुअर्ट मिल आदि विचारकों के प्रासंगिक सन्दर्भ देखेंगे तो आप समझ जाएँगे कि समाजवादी पार्टी ने अपने इस प्रतिभाशाली सांसद को संसद में सदा बने रहने के लिए बाध्य क्यों किया है।

इस ग्रन्थ को पूरा पढऩे पर आपको रामगोपाल जी के सपनों का भारत साफ-साफ दिखाई पड़ने लगेगा। डॉ. राममनोहर लोहिया के समतामूलक समाज और बृहत्तर भारत की कल्पना को यह सपना साकार करता है।

- वेदप्रताप वैदिक

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