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लेख-निबंध >> सांझी संस्कृति का खण्डहर कश्मीर

सांझी संस्कृति का खण्डहर कश्मीर

आशीष पाण्डेय

प्रकाशक : रोली प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 9485
आईएसबीएन :9788189457976

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

किसी साहित्यकार की कृतियों का अध्ययन-आंकलन करते यदि कोई शोधार्थी, उस साहित्यकार के मनोमंथन और पीड़ा का साझीदार बन जाता है, तो यह स्वयं में एक प्रमाण है कि उसने उसकी कृतियों का गहन शोध और सूक्ष्म विवेचन करके, रचयिता की आंतरिकता में प्रवेश कर, तादात्म्य क्षमता से, उसके साहित्य के मर्म को समझने का सफल प्रयास किया है।

साँझी संस्कृति का खण्डहर :

कश्मीर, ग्रंथ की समापन पंक्तियों में आशीष लिखते हैं कि वे खुद को चन्द्रकान्ता जी (कथा सतीसर की लेखिका) के साथ उसी कतार में खड़ा पाते हैं, जहाँ एक रची-बसी संस्कृति के खण्डहर होते जाने, विघटन और त्रासदी के जहर, उसकी रगों तक रिसते जाने की पीड़ा है।

इस ग्रंथ का जितना भी अंश मैं पढ़ पाई, उसके आधार पर मैं नि:संकोच कह सकती हूँ कि आशीष जी ने शैव, बौद्ध और इस्लाम धर्म के समन्वय और ऋषि-सूफी परम्परा की विरासत से सहेजी गई एक समृद्ध साँची संस्कृति के विखण्डन से उत्पन्न मानवीय त्रासदी को महसूस कर, कृतियों में दिए गए ऐतिहासिक-राजनीतिक साक्ष्यों की सम्यक् पड़ताल कर, इस त्रासदी के वास्तविक कारणों को जानने का प्रयास किया है।

प्रथम पृष्ठ

    अनुक्रम

  1. साँझी संस्कृति के विखण्डन से उपजी पीड़ा
  2. भूमिका
  3. चन्द्रकान्ता का रचना संसार
  4. जम्मू एवं कश्मीर का भूगोल और इतिहास
  5. कश्मीरी राजनीति : राजशाही बनाम लोकशाही बनाम आतंकवाद
  6. कश्मीरी समाज : जन और जीवन
  7. धर्म, आस्था और लोकविश्वास
  8. बिखरती लोकचेतना : अस्मिता की तलाश
  9. उपसंहार
  10. परिशिष्ट : सहायक ग्रन्थ सूची

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