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नारी विमर्श >> समकालीन महिला साहित्यकार

समकालीन महिला साहित्यकार

रश्मि अग्रवाल

प्रकाशक : निरुपमा प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 9470
आईएसबीएन :9789381050460

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

अपनी बात

पृथ्वी पर जन्मा प्रत्येक मानव परमपिता परमेश्वर की संतान हैं क्योंकि उसके पास अथाहा शक्तियों का ज्ञान के भंडार है जो अनंत है अर्थात् जिसकी कोई सीमा नहीं। ईश्वर की अद्वितीय रचना स्त्री भी उनमें से एक है।

स्त्री चाहे किसी भी पद पर आसीन हो पर परिवार सर्वथा उसकी प्राथमिकता ही बना रहता है जैसे... आज आधुनिकता की दौड़ में महिला स्वयं को सशक्त समझते हुए प्रत्येक क्षेत्र में परचम लहरा रही है। इससे समाज का नजरिया स्त्रियों के प्रति विस्तृत हुआ है। आज पुरुष समाज में भी महिलाओं के सशक्तिकरण की बातें उठने लगी हैं। फिर भी महिला घर-परिवार के लिए समर्पित रहती है।

वास्तव में स्त्री समाज की वो इकाई है जिसके बिना प्रत्येक अंग अधूरा है। इसलिए ईश्वर की इस अद्वितीय रचना को उसके हिस्से का आसमान देना होगा जहाँ वो असंख्य तारों की भांति स्वयं के व्यक्तित्व के विविध रूपों की छटा अविरमता के साथ बिखेर सके।

मेरी असीम शुभकामनाएँ उन सभी महिला साहित्यकारों, रचनाकारों को प्रेषित हों जो अपनी कला, संस्कृति व शिक्षा का सदुपयोग करते हुए पुस्तक ‘समकालीन महिला साहित्यकार’ से जुड़कर समाज के विस्तृत धरातल पर स्वयं को सिद्ध करना चाहती है, साहित्य के क्षेत्र में अग्रणीय रहना चाहती है। निस्संदेह नारी संस्कृति की अनमोल धरोहर, मानव के सृजन व रचना के कारणों में अद्वितीय भूमिका निभाती है।

आज भी महिलाएँ साहित्य सृजन तो कर रही हैं पर माध्यम व मंच न मिल पाने से स्वयं से अनभिज्ञ घर की चाहर दीवारी में भी सिमटी हुई हैं। ऐसी महिलाओं के बहुमुखी विकास व पुरुष की सहभागी स्त्री के सशक्तिकरण हेतु उनके विकास को समर्पित ‘वाणी हिंदी संस्थान’ नजीबाबाद की उन सक्रिय महिलाओं व सभी मातृशक्तियों को समर्पित संस्था का निर्माण जो हमने किया वो नारी अस्मिता को उद्घोषित करता, आत्मविश्वास रोपित करता, सशक्तिकरण की बुनियाद को मजबूत करता और वैचारिक क्रांति को संकलित करता है।

पुनः इसी आशा और विश्वास के साथ ‘समकालीन महिला साहित्यकार’ संकलन नारी के विचारों का विस्तृत माध्यम बनेगा और एक मजबूत मंच प्रदान करेगा जहाँ बारम्बार उनके सुगठित विचार लेखनी द्वारा प्रकाशित होते रहेंगे।

मैं ये पुस्तक आपको सौंपकर हर्षित हूँ क्योंकि इस पुस्तक के माध्यम से, दृष्टिकोण से स्वस्थ समाज का निर्माण हो, महिलाओं में अच्छे साहित्य के प्रति रुचि हो, जीवनानुभवों के विभिन्न आयामों पर स्थिरता हो, समय के यथार्थ पर भूत, वर्तमान व भविष्य पर गंभीर चिंतन मनन हो।

आप सभी सम्मानित साहित्यकारों, रचनाकारों व पाठकों का स्नेहभाव, प्रेम, दुलार, मुझे अनवरत मिलता रहे, यूँ ही प्रेरणा देता रहे व कठिन परिस्थितियों में भी मेरी लेखनी सत्य-शिवम्-सुंदरम् बनने का हर संभव प्रयास करती रहे। इसी भावना के साथ आपकी सार्थक प्रतिक्रियाओं की....

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