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अक्षर कथा

गुणाकर मुले

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2019
पृष्ठ :394
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 9438
आईएसबीएन :9788126728077

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

प्राचीन नदीघाटी सभ्यताओं में जब नगरों की स्थापना होने लगती है, पहली बार लिपियाँ तभी जन्म लेती दिखाई देती हैं ! यह कोई छह हजार साल पहले की बात है ! वर्न्मलात्मक लिपियाँ ई.पू. दसवीं सदी के आसपास पहली बार सामने आती हैं ! तब से आज तक लिपियों का विशेष विकास नहीं हुआ ! बहुत-सी पुरालिपियाँ मर गई हैं, उनका ज्ञान भी लुप्त हो गया ! पिछले करीब दो सौ वर्षों में संसार के अनेक पुरालिपिविदों ने पुनः उन पुरालिपियों का उद्घाटन किया है !

इस ग्रन्थ में गुणाकर जी ने मुख्यतः संसार की प्रमुख पुरालिपियों की जानकारी दी है ! पाठक इससे जान जाएँगे कि किस देश में कौन-सी लिपि का अस्तित्व था, उसका स्वरुप कैसा था, उसके संकेत या अक्षर कैसे थे और आधुनिक काल में उन पुरालिपियों का उद्घाटन कैसे हुआ ! पुस्तक के दुसरे खंड में भारतीय लिपियों की जानकारी है ! आरम्भ में सिन्धु लिपि (अज्ञात) तथा खरोष्ठी लिपि का विवरण है ! फिर ब्राह्मी लिपि के उदभव तथा विकास के बारे में यथासम्भव पूरी जानकारी दी गई है !

पुस्तक का परिशिष्ट संसार के प्रमुख भाषा-परिवारों पर केंदित है ! भाषा सम्बन्धी जिज्ञासु पाठकों और छात्रों के लिए प्रमाणिक तथ्यों, चित्रों और तालिकाओं से समृद्ध यह पुस्तक निश्चित रूप से उपादेय होगी !

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