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रहस्य-रोमांच >> चीते का दुश्मन, रहस्य के बीच

चीते का दुश्मन, रहस्य के बीच

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :318
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9410
आईएसबीएन :9789332424333

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

‘‘बेटा लूमड़ मियां...!’’ विजय अलफांसे को एक क्षण घूरने के बाद बाईं आंख दबाकर बोला - ‘‘इसका मतलब ये हुआ कि उस फिल्म के जरिए तुम हर जासूस से एक-एक करोड़ रुपया ऐंठोगे।’’

‘‘बिल्कुल ठीक समझे जासूस प्यारे।’’ अलफांसे अधिक आराम से कुर्सी पर पसरता हुआ बोला - ‘‘मेरा खयाल है कि आजकल मूंग की दाल में भीमसेनी काजल कुछ अधिक मिलाकर खाने लगे हो।’’

‘‘मगर असली फिल्म किसे दोगे लूमड़ भाई ?’’
‘‘इसका निर्णय भला मैं कैसे कर सकता हूं ?’’ बड़े विचित्र ढंग से मुस्कराया अलफांसे।

‘‘तो प्यारे लूमड़ खान, तुम्हारे इस सम्पूर्ण व्याख्यान का रस ये है कि हम यानी विजय दी ग्रेट तुम्हारे हलक में एक करोड़ रुपया ठूंसें और इस पर भी यह गारंटी नहीं कि फिल्म असली ही मिलेगी।’’

‘‘जब तक तुम मुझे एक करोड़ रुपया नहीं दे देते तब तक भला मैं तुम्हें कैसे बता सकता हूं कि मेरा इरादा तुम्हें असली फिल्म देने का है अथवा नकली।’’

‘‘बेटे लूमड़मल पकोड़ी वाले !’’ एकाएक विजय का लहजा सख्त हो गया - ‘‘लोग हमें विजय दी ग्रेट कहते हैं।’’ कहते हुए विजय ने बड़े अंदाज के साथ अपनी बांहें ऊपर चढ़ाई और उसकी ओर बढ़ता हुआ गुर्राते हुए लहजे में बोला - ‘‘कसम छज्जन ताई की, तुम्हें फूटी कौड़ी भी नहीं देंगे और फिल्म हमारे पास होगी...ऐसा भी हो सकता है कि तुम्हारे मुंह में फंसा ये जबड़ा भी हमारे पास हो।’’

‘‘तुमसे पहले भी कह चुका हूं जासूस प्यारे कि मुझे मालूम है तुम इतने मूर्ख नहीं हो।’’ बिना विचलित हुए अलफांसे मुस्कराते हुए बोला - ‘‘तुम खुद यहां चंगेज खां के मेकअप में आए हो।’’

‘‘ये रहस्य केवल तुम जानते हो लूमड़ भाई।’’ विजय मूर्खों की भांति बोला - ‘‘और तुम्हें इतना मौका नहीं देंगे कि तुम किसी और को यह बता सको।’’

‘‘अलफांसे रास्ते में आए रोड़ों को ठोकर मारकर हटा देता है।’’

‘‘लेकिन हम रोड़े नहीं, भारी पत्थर हैं लूमड़ भाई।’’ कहते हुए विजय ने बड़ी तेजी के साथ अलफांसे पर जम्प लगा दी। लेकिन अलफांसे विजय के तेवर देखकर ही समझ गया था कि वह किस मूड में है ? विजय से अधिक शक्ति का प्रदर्शन करके उसने कुर्सी सहित खुद को गिरा लिया था। उसके बाद अलफांसे ने बड़ी तेजी से उठने की कोशिश की। किंतु उसका पैर कुर्सी में उलझ गया - इस कारण उसे उठने में कुछ विलम्ब हुआ और इसका लाभ उठाते हुए विजय ने ठोकर उसके चेहरे पर रसीद कर दी।

अलफांसे उछलकर दूर जा गिरा।
लेकिन बिजली की-सी गति से वह पलटा और इस बार उसके हाथ में रिवॉल्वर था।

अलफांसे के हाथ में रिवॉल्वर देखते ही विजय सकपका गया। एक पल तक मूर्खों की भांति पलकें झपकता हुआ विजय उसे घूरता रहा... फिर भटियारिन की भांति हाथ नचाकर बोला - ‘‘हाय लूमड़ मियां, क्या दम ही निकालोगे ?’’

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