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गीता प्रेस, गोरखपुर >> सफलता के शिखर की सीढ़ियाँ

सफलता के शिखर की सीढ़ियाँ

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2003
पृष्ठ :89
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 931
आईएसबीएन :00000

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प्रस्तुत है शिव के विचार उच्च जीवन की सफलता के शिखर पर पहुँचाने वाली सुखमयी सीढ़ियों के रूप में...

Safalta Ke Shikhar Ki Sidhiyan -A Hindi Book by Hanumanprasad Poddar - सफलता के शिखर की सीढ़ियाँ -

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

अनुरोध

लीजिये ‘शिव’ के विचार उच्च जीवन की सफलता के शिखर पर पहुँचाने वाली सुखमयी सीढ़ियों के रूप में आपके सामने उपस्थित हैं। उच्च जीवन के शिखर पर पहुँचना हो तो सावधानी के साथ इन सीढ़ियों से चढ़ना आरम्भ कर दीजिये। चढ़ने में भी श्रम-कष्ट न होकर आराम-सुख मिलेगा और शिखर पर पहुँच जाने पर तो परमानन्दस्वरूप की प्राप्ति ही हो जायगी।

सफलता के शिखर की सीढ़ियाँ
कल्याण-कुञ्ज भाग-6

भोगसुख की असत्ता

याद रखो—भोगों में सुख वैसे ही नहीं है जैसे पानी में घी नहीं है, बालू में तेल नहीं है, मृगतृष्णा के मैदान में जल नहीं है और अग्नि में शीतलता नहीं है। अतः जो कोई भी भोगों से सुख की आशा रखता है, उसे निराश ही रहना पड़ता है। तथापि मनुष्य मोह में पड़कर भोगों में सुख की सम्भावना मानकर उनके अर्जन तथा सेवन में लगा रहता है और फलस्वरूप नित्य नये-नये रूपों में दुःखों से, तापों से जलता रहता है।
याद रखो—भोग की वासना मनुष्य के विवेक का हरण कर लेती है, इसलिए वह अपने भले-बुरे भविष्य को भूलकर किसी भी साधन से चाहे वह सर्वथा निषिद्ध तथा समस्त मंगलों का नाश करने वाला ही क्यों न हो- इच्छित भोग प्राप्त करने की चेष्टा करता है और इसके परिणामस्वरूप बीच में ही नयी विपत्तियों से घिर जाता है तथा उनसे बचने के लिए फिर-फिर नये-नये कष्टसाध्य कुकृत्य करने लगता है। इससे विपत्तियों का, पापों का और तापों का ताँता कभी टूटता ही नहीं।
याद रखो—भोगवासना वाले मनुष्य को कभी कुछ इच्छित भोग मिल जाता है तो उसका लोभ और भी बढ़ जाता है, साथ ही वह सफलता के गर्व में फूलकर सबका तिरस्कार करने लगता है। लोभ और गर्व- दोनों ही उसको पुनः बुरे-बुरे कर्मों में लगाकर पतन की ओर ले जाते हैं।


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