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खौफ का सौदागर

नीलाभ

प्रकाशक : हार्परकॉलिंस पब्लिशर्स इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :138
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9002
आईएसबीएन :9788172238919

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इमराम सीरीज का एक महत्वपूर्ण उपन्यास...

Khauf Ka Saudagar- Hindi Book by Neelebh

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

दो शब्द

दोआबे की मिलवाँ ज़बान, गठे हुए कथानक, अन्त तक सनसनी बनाये रखने की क्षमता और उनके जासूसों इन्स्पेक्टर फ़रीदी और अली इमरान द्वारा थोड़े-बहुत शारीरिक उद्यम के बावजूद दिमाग़ी कसरत से ही ‘अपराधी कौन ?’ का जवाब ढूँढने की क़ूवत ने इब्ने सफ़ी को निर्विवाद रूप से एक लम्बे समय तक जासूसी उपन्यास के प्रेमियों का चहेता बना रखा था जिनमें इन पंक्तियों का लेखक भी शामिल है। इब्ने सफ़ी की एक विशेषता यह भी थी कि जहाँ ‘भयंकर भेदिया,’ ‘भयंकर जासूस’ और एम.एल. पाण्डे के उपन्यास सिर्फ़ हिन्दी में छपते, ‘जासूसी दुनिया’ और इमरान वाली सीरीज़ हिन्दी-उर्दू दोनों ज़बानों में शाया होती। उर्दू में जो उपन्यास प्रकाशित होता, उसमें जासूस इन्स्पेक्टर अहमद कमाल फ़रीदी और फ़रीदी का सहायक सार्जेंट हमीद होते, जबकि हिन्दी में फ़रीदी का नाम कर्नल विनोद हो जाता, हमीद ज्यों-का-त्यों रहता। यही हाल इब्ने सफ़ी के इमरान सीरीज़ के उपन्यासों का था, जहाँ हिन्दी प्रारूप में इमरान राजेश हो जाता। इसे भी उस ज़माने के साम्प्रदायिक मेल-मिलाप की फ़िज़ा का एक सबूत माना जा सकता है। फिर इब्ने सफ़ी का यह कमाल था और इसे मैं उनकी उर्दू तरबियत ही की देन कहना चाहूँगा कि वे अपने जासूसी उपन्यासों में बड़े चुटीले हास्य-भरे प्रसंग भी बीच-बीच में गूँथ देते। यानी उनके किरदार किसी दूसरी दुनिया के अपराजेय नायक नहीं थे, बल्कि हाड़-माँस के इन्सान थे। कभी-कभार अपराधियों से ग़च्चा भी खा जाते थे। कभी-कभार एक-दूसरे से मज़ाक्र भी कर लेते थे।

इमरान सीरीज़ तक आते-आते इब्ने सफ़ी की हुनरमन्दी इस परवान पर चढ़ चुकी थी कि वे प्लॉट और उसके विभिन्न प्रसंगों के साथ-साथ चरित्र-चित्रण भी ग़ज़ब का करने लगे थे। पहले अगर उनके मन में कुछ रुकावटें रहीं तो वे इमरान सीरीज़ तक आते-आते दूर हो चुकी थीं और अब उन्हें ऐसे लोगों की अच्छाइयों को भी उजागर करने से कोई गुरेज़ नहीं था जो अमूमन समाज की नज़र में अच्छे नहीं समझे जाते। मिसाल के लिए इमरान सीरीज़ के चौथे उपन्यास ‘भयानक आदमी’ में, जो हम यहाँ पेश कर रहे हैं, एक पात्र है ऐंग्लो-इण्डियन लड़की रूशी, जिसका पेशा हाई क्लास वेश्या का है - मर्दों को फँसाना और फिर उनसे पैसा कमाना। लेकिन जब इमरान शादाब नगर के मामले को सुलझाने वहाँ पहुँचता है और रूशी उससे रू-ब-रू होती है तो उसके कठोर दिल में कुछ दूसरी ही भावनाएँ पैदा होने लगती है। और वह इमरान की मदद करने का फ़ैसला करती है। ऐसी नेकी रूशी को किन खतरों में डाल देती है इसका रोमांचक ब्योरा तो आप उपन्यास में पढ़ेंगे, लेकिन रूशी का किस्सा यहीं खत्म नहीं होता, बल्कि जब वह अपनी पुरानी ज़िन्दगी को बदल कर नयी ज़िन्दगी जीने का इरादा इमरान को बताती है तो वह उसे अपनी सहायक बना कर ले आता है। ‘खौफ़ का सौदागर’ यों तो तस्करी के प्लॉट पर आधारित है, लेकिन इसमें जिन पात्रों को इब्ने सफ़ी ने चित्रित किया है, उनका असर पाठकों पर बहुत गहरा पड़ता है।

हमें विश्वास है कि आप जब इस क़िस्से से गुज़रते हुए उस आदमी के कारनामों से रू-ब-रू होंगे जिसका एक कान आधा कटा हुआ है, जो करोड़ों की तस्करी करने के लिए ख़ुद अपने जहाज़ में मामूली मल्लाह की नौकरी करता है और ऐसी-ऐसी हिकमतों में माहिर है जो उसकी शैतानियत को और भी बढ़ा देती हैं तो आप प्रभावित हुए बिना नहीं रहेंगे।

तो आइए, खोलिए पहला सफ़ा और तैयार हो जाइए ‘ख़ौफ़ का सौदागर’ से मिलने के लिए।

- नीलाभ

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