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उपन्यास >> नागानिका

नागानिका

शुभांगी भडभडे

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :375
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8988
आईएसबीएन :9789326352376

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सातवाहन वंश की यशस्वी महारानी नागानिका की कथा

Naganika - Shubhangi Bhadbhade

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश



नागनिका

सम्राट अशोक के शासनकाल के बाद लगभग साढ़े चार सौ वर्षों तक सातवाहन ( शालिवाहन ) राजवंश का समृद्ध इतिहास मिलता है। इसी वंश की तीसरी पीढ़ी की राज-शासिका थी-’नागनिका’। विश्व के इतिहास में नागनिका पहली महिला-शासक मानी जा सकती है। उपन्यास की नायिका नागनिका सम्राट सिमुक सातवाहन की पुत्रवधू तथा सिरी सातकर्णी की पत्नी है। युवावस्था में ही सिरी सातकर्णी का निधन हो जाने से वह राज्य-कार्यभार सँभालती है।

सातवाहन काल में वृहद् महाराष्ट्र, जिसमें कर्णाटक-कोंकण तक सम्मिलित थे, की राजधानी प्रतिष्ठान (पैठण) थी। महारानी नागनिका कहने को तो शक-कन्या है लेकिन सातवाहन के ब्राह्मण कुल से सम्बद्ध होते ही वह आर्यसंस्कृति के संरक्षण एवं समृद्धि के लिए तन-मन से योगदान करती है। शासन की व्यवस्था में जहाँ वह सर्वजनहिताय समर्पित है वहीं गृहकलह के कारण साम्राज्य विघटित न हो, इसके लिए स्वजन को भी दंडित करने में नहीं हिचकती। कहना न होगा कि प्रस्तुत उपन्यास तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक एवं धार्मिक परिस्थितियों की वास्तविकता से हमारा साक्षात्कार कराता है।

उपन्यास ’नागनिका’ में सातवाहन सम्राट सिरी सातकर्णी, नायिका नागनिका तथा उसके दोनों पुत्रों-वेदिश्री और शक्तिश्री का चरित्र प्रमुख रूप से निरूपित हुआ है।

इतिहास के शोधकर्ताओं से उपलब्ध सामग्री तथा लेखिका का लेखन-स्वातन्त्र्य इस उपन्यास को विशेष लालित्य प्रदान करता है।



मनोगत

‘वस्तुतः राष्ट्रनिर्माण हो जाने पर राष्ट्रविकास की संकल्पना को पूर्ण करते समय प्रथम और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य सीमारक्षण का होता है। आज इन बातों पर गम्भीरता से विचार करने की आवश्यकता है। राज्य सबल, सुन्दर, विकसित और सम्पन्न तभी हो सकेगा जब राष्ट्र निर्भय होगा।

हम शान्तिप्रिय हैं और हम अहिंसा के पुजारी हैं, इसका कोई ,मनमाना अर्थ न निकाल ले, इसलिए हमें अपने राष्ट्र को सामर्थ्यशाली साधन सम्पन्न बनाना होगा। किसी को इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि कोई शत्रु कभी हम पर आक्रमण नहीं करेगा ! दुष्ट और हिंसक प्रवृत्तियाँ कभी समाप्त नहीं होती हैं। यथावसर ऐसी प्रवृत्तियाँ विश्व-विनाशकारी सिद्ध होती हैं। इसलिए राष्ट्रसेना सुरक्षित, सुसज्जित और प्रशिक्षित होनी चाहिए। भविष्य में हम अपने राष्ट्र में अन्तरिम और बाह्य कैसे भी विद्रोह अथवा आक्रमण को क्षमा नहीं करेंगे। महामन्त्री सुशर्मा ! आप इस समाचार को त्वरित प्रसारित करने की व्यवस्था कीजिए !’

- महारानी नागनिका ने गर्जना की

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