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जहाँगीर की स्वर्णमुद्रा

सत्यजित राय

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1998
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8441
आईएसबीएन :9788171786770

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सुविख्यात फिल्म-निदेशक और बांग्ला लेखक सत्यजित राय की बाहर कहानियों का महत्त्वपूर्ण संग्रह

Jahangeer Ki Swarnmudra (Satyajit Roy)

‘जहाँगीर की स्वर्गमुद्रा’ सुविख्यात फिल्म-निदेशक और बांग्ला लेखक सत्यजित राय की बाहर कहानियों का महत्त्वपूर्ण संग्रह है।

सत्यजित राय विरल कथा-स्थितियों और मानव-जीवन की विविधता के चितेरे हैं। देश-काल-परिवेश इस चित्रण में एक विराट फलक का कार्य करता है और उनकी अनुभव-सम्पन्न जीवन-दृष्टि विविध रंगों का। एक ऐसा समाज इन कहानियों में बराबर दिखाई देता है, जिसमें विभिन्न प्रकार की आशंकाएँ, कुंठाएँ और अन्तर्विरोध मानव-जीवन को प्रभावित-परिचालित करते हैं। फिर भी उनका मनुष्य कहीं हारता नहीं। ठगा जाकर भी ठगने की कोशिश नहीं करता और मानव-मूल्यों के प्रति एकनिष्ठ बना रहता है। यही कारण है कि वर्तमान व्यावसायिक सभ्यता से शोषित-प्रताड़ित होने के बावजूद कहीं-कहीं तो वह नैतिक प्रतिरोध की शक्ल अख्तियार करता दिखाई देता है।

राय के कथा-लेखन की कुछ और विशेषताओं से भी ये कहानियाँ परिचित कराती हैं। मसलन, स्थितियों की निस्संग रहस्यात्मकता, व्यंग्य-विनोद का महीन पुट और शिल्पगत नाटकीयता। संक्षेप में कहा जाए तो हिन्दी पाठकों के लिए ये कहानियाँ एक अलग तरह का अनुभव-संसार सँजोए हुए हैं।


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