लोगों की राय

कविता संग्रह >> असी घाट का बाँसुरी वाला

असी घाट का बाँसुरी वाला

तजेन्दर सिंह लूथरा

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :72
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8429
आईएसबीएन :9788126722617

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

164 पाठक हैं

चाहता हूँ/ अकेला हो जाऊँ / कोई आसपास न रहे / ज्यादा देर तक / आए और चला जाए / अपने आप।

Assi Ghat Ka Bansuri Wala (Tejendra Singh Luthra)

चाहता हूँ/ अकेला हो जाऊँ / कोई आसपास न रहे / ज्यादा देर तक / आए और चला जाए / अपने आप।

तजेन्दर सिंह की कविताओं में अनायासता का यह स्वर कई स्तरों पर दिखाई पड़ता है। वे सायास कवि नहीं होना चाहते; न आई हुई कविता को अतिरिक्त प्रयास से गढ़ने-बनाने की कोशिश करते हैं; सामने से गुजरते हुए जीवन व संसार की जिस-जिस छवि को पकड़ते हैं, उसे हू-ब-हू उसी रूप में पाठक के सामने रखने की उनकी इच्छा ही उनकी काव्य-कला है। इसके चलते कई बार अनुभूतियों के जो बिम्ब कुछ अनगढ़ रूप में दिखाई पड़ते हैं, वे दरअसल एक भीतरी तराश का ऊपरी आवरण हैं, जो पाठक को धीरे-धीरे अपने भीतर उतरने के लिए आमंत्रित करता है।

घर से लेकर महानगर तक के विस्तार में विचरण करती उनकी काव्य-संवेदना जीवन की हर उस विकलता का नोटिस लेती है, जिसका प्रभाव मनुष्य की नियति पर पड़ता है या पड़ सकता है। संग्रह में शामिल कविता ‘मुझे जीने दो’ की यह पंक्ति ‘मैं इतना सार्वजनिक हो गया / कि मुझे मेरे सिवा सब पहचानने लगे थे।’ सार्वजनिक स्पेस का आक्रामकता के बाच मौजूद व्यक्ति की पीड़ा का अचुक रेखांकन है।

यह कवि का पहला कविता-संग्रह है, लेकिन कविता-प्रेमियों के लिए उनका कवि-व्यक्तित्व और उनकी कविताएँ अपरिचित नहीं हैं। इस संग्रह में शामिलअस्सी घाट का बाँसुरी वाला’, ‘जैसे माँ ठगी गई थी’ और ‘एक साधारण शवयात्रा’ जैसी कविताओं ने बराबर सुधी पाठक का ध्यान आकर्षित किया है; और नवीन दृष्टि और पर्यवेक्षण के चलते उनकी याददाश्त में स्थायी जगह बनाई है।

उम्मीद है कविता का यह नया रंग पाठकों को ताजगी प्रदान करेगा।


प्रथम पृष्ठ

लोगों की राय

No reviews for this book