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मिथिलेश्वर संकलित कहानियां

मिथिलेश्वर

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :315
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8275
आईएसबीएन :9788123757551

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मिथिलेश्वर संकलित कहानियां

Mithileshwar Sanklit Kahaniyan - A Hindi Book - by Mithileshwar

भारतीय जनमानस के विभिन्न पक्षों पर केंद्रित रचनाएं कहीं आपको थपकी कहीं उत्तेजित कहीं उत्साहवर्धन करती दिखती है और तो कहीं-कहीं ये रचनाएं नैतिक दृष्टि से आपकी संवेदनाओं को कहीं उन्नत बनाती है।

कहानियां पढ़ते हुए आप उस पृष्ठभूमि में चले जायेंगे और उस वस्तुस्थिति के हो जायेंगे उस वातावरण को करीब से महसूस करेंगे।

यही लेखक की खूबसूरती है। ये कहानियां आम पाठक की वे मौलिक स्वीकृति है जिसमें वह स्वयं को पाता है। ऐसे ही कथाकार मिथिलेश्वर है...

डा. मिथिलेश्वर (31 दिसंबर 1950) का जन्म बिहार के भोजपुर जिले के बैसाडीह नामक गाँव में हुआ। एम.ए., पी-इच.डी. (हिंदी) की शिक्षा उपरांत अब तक दों दर्जन से अधिक पु्स्तकें हिंदी जगत को दे चुके लेखक की लोकप्रिय पुस्तकों में कहानी संग्रह इस प्रकार हैं : बाबूजी (1976), बन्द रास्तों के बीच (1978), दूसरा महाभारत (1979), मेघना का निर्णय (1980), तिरिया जनम (1982), हरिहर काका (1983), एक में अनेक (1987), एक थे प्रो. बी. लाल (1993), भोर होने से पहले (1994), चल खुसरो घर आपने (2000) तथा जमुनी (2001) इसी तरह उपन्यासों में झुनिया (1980), युद्धस्थल (1981), प्रेम न बाड़ी उपजै (1995), यह अंत नहीं (2000), सुरंग में सुबह (2003) तथा माटी कहे कुम्हार से (2006), भोजपुरी लोककथा का संकलन व संपादन (2008)। मिथिलेश्वर ने निबंधों के अलावा नवसाक्षरों व बच्चों के लिए भी कई पुस्तकें लिखी हैं। साहित्यिक पत्रिका ‘मित्र’ के संपादक भी हैं। अनेक महत्वपूर्ण पुरस्कार से लेखक को सम्मानित किया गया है जिनमें ‘सोवियत लैंड नेहरू’ पुरस्कार (1979), ‘यशपाल’ पुरस्कार (1981-82) तथा मध्यप्रदेश साहित्य अकादेमी पुरस्कार (2003) प्रमुख हैं। इन दिनों बिहार में आरा जिले में वीर कुंवर विश्वविद्यालय के  स्नातकोत्तर हिंदी विभाग में रीडर के पद पर कार्यरत है।

हत्यारों की वापसी


रात के बारह बज रहे हैं। तेगा, सिगू और गनपत दबे पांव आगे बढ़े जा रहे हैं। वे शहर की उस मुख्य सड़क को पार कर चुके हैं जो रात-भर चलती रहती है। वे शहर के उन स्थानों और मुहल्लों को भी लांघ चुके हैं, जहां रात होती ही नहीं–बिजली की दूधिया रोशनी और लोगों की सरगर्मी बनी रहती है। अब वे शहर के पश्चिमी हिस्से की तरफ उस मुहल्ले में आ गए हैं जो शहर का सबसे उपेक्षित मुहल्ला है। वहां की गलियों में रोशनी का कोई प्रबंध नहीं। रास्ते ऊबड़-खाबड़। कच्चे-पक्के मकान। बीच-बीच में कुछ झोपड़ियां। सीलन-भरी गलियां। किनारे की नालियों से आती तीखी दुर्गंध। इस मुहल्ले में शहर के मजदूर, मेहतर, रिक्शाचालक तथा छोटी-छोटी नौकरियां करने वाले रहते हैं, जो शहर के दूसरे मुहल्लों में ऊँचे किराए नहीं दे सकते।

गनपत कल दिन में ही यहां आया था। उसके साथ हाजी सेठ का एक आदमी भी था। वह गनपत को एक निश्चित जगह दिखाकर एक निश्चित व्यक्ति को पहचनवा चुका है। अब गनपत को क्या करना है यह हाजी सेठ से उसे मालूम है। अक्सर इस तरह के कामों में गनपत तेगा और सिगू को ज़रूर लेता है। सच्चाई तो यह है कि गनपत मोलभाव करके कामों को तय करता है। योजना बनाता है, लेकिन उसे अंजाम तक तेगा और सिगू ही पहुंचाते हैं।

गनपत को उस पहचनवाए व्यक्ति के बारे में कोई जानकारी नहीं। देखने में गनपत को वह एक साधारण व्यक्ति मालूम पड़ा है। हाजी सेठ के यहां की बातों से वह यह जान पाया है कि वह व्यक्ति हाजी सेठ के परिवार के लिए चिंता का कारण बना हुआ है। शायद कहीं हाजी सेठ की कोई नई फैक्टरी बन रही है, जहां वह व्यक्ति अड़ंगा डाल रहा है। बात क्या है, स्थिति क्या है, क्यों वह व्यक्ति हाजी सेठ से टकरा रहा है, इन सब बातों की विस्तृत जानकारी गनपत को नहीं। उसने इन बातों की जानकारी के लिए कोशिश भी नहीं की। हाजी सेठ के कामों में वह अधिक छानबीन और पूछताछ नहीं करता। हाजी सेठ जब भी काम कराता है, ऊंची रकम देता है। इसीलिए गनपत आंख मूंदकर हाजी सेठ का काम करता है।
 
अपने साथियों के साथ गनपत तेजी से आगे बढ़ा जा रहा है। लोग सो चुके हैं। घर के दरवाजे और खिड़कियां बंद हैं। रात के सन्नाटे में पूरे मुहल्ले का सूनापन गनपत को अच्छा लगता है। ऐसे में काम बड़ी आसानी से हो जाता है।

गनपत को जब कभी रोशनी और सरगर्मी वाले मुहल्लों में काम करना होता है, तो बड़ी फजीहत होती है। एक काम में कभी-कभी पूरा महीना लग जाता है। कितनी साजिशें और कितने षड्यंत्र रचने पड़ते हैं, लेकिन इन मुहल्लों में तो वह चुटकी बजाकर काम कर लेता है। गनपत को ये मुहल्ले शहर के गांव जान पड़ते हैं। बिलकुल गांवों की तरह ही बेरौशन, असुरक्षित और सामर्थ्यहीन।

गनपत अपने साथियों के साथ निश्चित जगह पहुंच जाता है। यहां से लगभग दस-बारह कदम के फासले पर ही वह कोठरी है जिसमें वह व्यक्ति रहता है। अभी वह अकेला है। परिवार साथ में नहीं रखा है। पता नहीं, कुंआरा है या बाल-बच्चे वाला? कहां का मूल निवासी है? गनपत को कुछ मालूम नहीं। कहीं का हो, इससे क्या मतलब? काम करेगा। पैसे बनाएगा। दारू पिएगा। मांस खाएगा। हीराबाई के साथ मौज करेगा। और क्या!

गनपत और उसके साथियों को यह देखकर भारी आश्चर्य होता है कि उस कमरे का दरवाजा खुला है। लालटेन जल रही है। मेज-कुर्सी लगी है और वह व्यक्ति कुछ लिखने में तन्मय है। ठीक सामने मेज पर रखी लालटेन की रोशनी सीधे-सीधे उस व्यक्ति के चेहरे पर पड़ रही है, जिससे उसका चेहरा साफ-साफ नजर आ रहा है।

इस पूरे मुहल्ले में जहां सभी के दरवाजे और खिड़कियां बंद हैं, वह व्यक्ति किवाड़ खोलकर लिख रहा है। हाजी सेठ से तकरार मोल लेकर भी उसे तनिक भय नहीं! एक क्षण के लिए गणपत और उसके साथियों का उत्साह ठंडा पड़ जाता है। वे किंकर्तव्यविमूढ़ गली के एक ढहे हुए पुराने मकान के मलबे के पास छिपकर बैठने की सलाह देता है।

अब गनपत और उसके साथी मलबे के ढेर के पीछे छिपकर उकडूं बैठ जाते हैं और उस व्यक्ति को घूरने लगते हैं। वहां से भी वह व्यक्ति साफ-साफ दिखाई पड़ता है। तेगा को लगता है, उस व्यक्ति को उसने कहीं देखा है। शराब के नशे में उसे ठीक-ठीक याद नहीं आ रहा, फिर भी वह याद करने की कोशिश करने लगता है।

तेगा जब भी इस तरह के कामों में जाता है, शराब खूब पी लेता है। गनपत और सिगू भी पीते हैं, लेकिन उसकी तरह नहीं। तेगा जानता है, अगर वह छककर नहीं पिएगा, तो उससे काम नहीं होगा। ऐसे काम होश-हवाश में रहते नहीं होते।

गनपत फुसफुसाता है, ‘‘एक ही साथ हम तीनों आगे बढ़कर तेजी से कोठरी में घुस चलें। सिगू उस व्यक्ति के दोनों हाथ पकड़ लेता। मैं उसका मुंह बंद तक दूंगा। तेगा काम तमाम तक देगा, ‘लेकिन देखना तेगा, वार सही स्थान पर हो।
मामला सफाए का है।’’

तेगा कहता है, ‘‘अभी ठहरो...’’

तेगा उस व्यक्ति को याद कर रहा है।

सिगू भी उस व्यक्ति को देर तक घूरने के बाद फुसफुसाता है, ‘‘देखने में यह भला लग रहा है। पढ़ने-लिखने वाला व्यक्ति है। आखिर हाजी क्यों इसका सफाया कराना चाहता है? मुझे तो यह गलत आदमी नहीं जान पड़ रहा।’’

गनपत जवाब देता है, ‘‘अपन को इससे क्या मतलब–यह सही हो या गलत? हाजी ने पूरे तीन हजार दिए हैं। तीनों को एक-एक हजार...। कम पैसे नहीं हैं।’’

सिगू चुप हो जाता है। गनपत भी चुप है। तेगा कुछ सोच रहा है। नशे के भीतर उसके स्मृति-पटल पर अब वह व्यक्ति उभरने लगा है। पिछले साल तेगा के गांव में हैजे की बीमारी फैली थी तेगा का गांव इस शहर के बिलकुल पास ही है–सिर्फ़ पांच किलोमीटर के फासले पर, लेकिन शहर की ओर से उसके गांव को बचाने की कोई कोशिश नहीं की गई। फिर उसके गांव की खबर सुन यह कोठरी वाला व्यक्ति पता नहीं कहां से आ गया था। इसके साथ नई उम्र के कुछ लड़के भी थे। उन सबने दौड़कर गांव और शहर एक कर दिया था। लड़-झगड़कर, शोरगुल मचाकर वे शहर से ढेर सारी दवाइयां और कई डाक्टरों को गांव तक खींच लाए थे...। तेगा का भतीजा मर जाता, अगर यह व्यक्ति समय पर न पहुंचता।

तेगा आंखे फाड़-फाड़कर उस व्यक्ति को निहारने लगता है। यह वही व्यक्ति है। तेगा उसे पूरी तरह पहचान लेता है। कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ता। पता नहीं, इसका क्या नाम है? गांव के लड़के इसे ‘भैया’ कहते थे।

अब तेगा फुसफसाता है, ‘‘गनपत, मैं इसे पहचानता हूं। मेरे गांव में हैजा फैला था, तो इसने लोगों की जान बचाई थी। यह बहुत भला आदमी है। हाजी से कहो, बातचीत करके इससे निबटारा कर ले।’’

गनपत, तेगा को समझाता है, ‘‘हाजी ने तीन हजार दिए हैं...आधे से अधिक तो हम खर्च कर चुके। उसे क्या लौटाएंगे? कम रुपये नहीं है।’’

तेगा कहता है, ‘‘हाजी से बोल दो, उसका कोई और काम कर देंगे।’’

इससे पहले कि गनपत कुछ और कहता, अचानक नई उम्र के पांच-सात लड़के गली को लांघते हुए तेजी से आते हैं और उस व्यक्ति की कोठरी में घुस जाते हैं।

गनपत और उसके साथियों को उनकी आवाज़ें साफ-साफ सुनाई देती हैं। वे हांफ रहे हैं, चेहरे तैशपूर्ण हैं, भैया! रात दस बजे के आसपास हाजी सेठ का ट्रक ईंटों से लदा आया था। हमने उस ज़मीन में ईंटा नही गिरने दिया। हाजी सेठ के आदमियों के साथ हमारी काफ़ी तकरार हुई। वे बगल वाले थाने में पुलिस की सहायता के लिए पहुंचे। हम भी वहां गए, हमने थानेदार से साफ कहा, ‘‘आप तो जानते हैं, इस ज़मीन में वर्षों से इस मुहल्ले के लड़के पढ़ते आ रहे हैं। अब हमने चंदा कर इस ज़मीन में बच्चों की पाठशला की नींव रखी है। यह ज़मीन हाजी सेठ की नहीं। म्युनिसिपैलिटी की है। इससे पहले के चेयरमैन ने इस ज़मीन में पाठशाला बनाने की अनुमति दी थी। इस नए चेयरमैन से मिलकर हाजी सेठ इस ज़मीन को दखल करना चाहते हैं। आपको मालूम होगा, भैया ने नए चेयरमैन के खिलाफ़ शहर में जुलूस निकाला था। जब तक कोई निर्णय नहीं हो जाता, आप हाजी सेठी की मदद करें, नहीं तो भैया थाने के खिलाफ़ भी जुलूस निकालेंगे।’ और भैया, जब हमने आप द्वारा जुलूस निकालने की बात कही तो थानेदार ने अपने सिपाहियों को रोंक लिया...। बस, हमने हाजी सेठ के ट्रक को आगे बढ़वा दिया।’’

सारी बात सुनकर वह व्यक्ति खड़ा होते हुए बोला, ‘‘बहुत ठीक किया तुम लोगों ने! बराबर उस ज़मीन पर तैनात रहना। कल हम सब नगर के कलेक्टर, एस.पी. और म्युनिसिपैलिटी के चेयरमैन से मिलेंगे। इस घटना पर शहर के लोगों में जनमत जगाएंगे। उस ज़मीन में वर्षों से हमारे बच्चे पढ़ते आ रहे हैं। वह ज़मीन हाजी सेठ के बाप की नहीं है।’’

वे आपस मे यही सब बातें कर रहे थे। गनपत और उसके साथियों के ऊपर उनकी बातों की गंभीर प्रतिक्रिया हुई। जिस पुलिस के डर से गनपत और उसके साथी कई-कई महीनों तक लापता हो जाते हैं, वह पुलिस उस व्यक्ति के नाम से डरती है। वे एक दूसरे के कानों में फुस-फुसाते हैं, ‘‘साले हाजी ने हमें गलत जगह भेजा है...यहां से लौट चलना चाहिए...’’

और वे दबे पांव वहां से लौट जाते हैं। जिस रफ्तार से आए थे, उससे तिगुनी रफ्तार से वापस जाते हैं। उनसे एक क्षण के लिए भी अब वहां रुका नहीं जाता।

सुबह हो गई है। गनपत और उसके साथी हाजी सेठ के कमरे में मौजूद हैं। यह जानकर हाजी सेठ का मन खीज से भर गया कि काम नहीं हुआ। हाजी सेठ गनपत को डांटना चाहता है, लेकिन उसके साथियों की उपस्थिति में वह ऐसा नहीं कर पाता। अकसर काम होने से पहले या काम होने के बाद गनपत अकेले ही आकर हाजी सेठ से बातचीत करता था, लेकिन आज उसके साथी भी आए हैं...। हाजी सेठ को लगता है, ज़रूर कोई खास बात है। वह पूछता है, ‘‘कौन-सा विघ्न उपस्थित हो गया? काम क्यों नहीं हुआ?’’

इससे पहले कि गनपत कुछ कहता, तेगा बोल उठा, ‘‘सेठजी, वह आदमी गलत नहीं...हम उसे नहीं मारेंगें...आप बातचीत करके निबटारा कर लीजिए, उसका सफाया मत करवाइए।’’

तेगा की बात से एक क्षण के लिए हाजी सेठ के होश गुम हो जाते हैं। लगता है, जैसे पर्वत की ऊंची चोटी से एकाएक लुढ़ककर वह नीचे आ गिरा हो। उसने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि गनपत और उसके साथी किसी आदमी के सही या गलत होने की बात भी कर सकते हैं। वह समझ नहीं पाता, उस दुबले-पतले आदमी ने इन लोगों पर कौन-सा जादू चला दिया कि ये इस तरह बात करने लगे।

हाजी सेठ कुछ क्षणों तक सोचता है। फिर उन तीनों को ले अंदर चल देता है। एक भव्य कमरे में उन तीनों को बैठाता है। फिर सामने की अलमारी खोल देता है। रंग-बिरंगी बोतलें निकल आती हैं। नौकर काजू और कबाब की प्लेटें सजा देते हैं।

गनपत और उसके साथियों को जीवन में इतनी अच्छी शराब कभी नहीं मिली थी। काजू और कबाब भी नहीं। डनलप के गद्दे पर ऊपर-नीचे लहराते हुए गनपत और उसके दोस्त खाने-पीने लगते हैं। अब हाजी सेठ बताना शुरू करता है, ‘‘वह व्यक्ति बहुत बदमाश है। गंदी बस्तियों के लोगों को बहला-फुसलाकर आंदोलन करवाता है। उन्हें मार खिलवाता है। जेल भिजवाता है। खुद नेता बना हुआ है। नई उम्र के लड़कों को शागिर्दी में रखता है। मैंने उसे रुपयों का भी लालच दिया। दो हजार ले लो, चार हजार, पांच हजार, लेकिन वह तो महात्मा बनता है। सीधे-सीधे रुपया कैसे लेगा?’’
सेठ अभी अपनी बात पूरी तरह कह भी नहीं पाता कि तेगा बीच में ही बोल उठता है, ‘‘बाकी सेठजी, वह आदमी खुद गंदी बस्तियों में ही रहता है। लोगों को ठगता तो ज़रूर अच्छी जगह रहता। मेरे गांव में हैजा फैला था तो उसने लोगों की जान बचाई थी। किसी से कुछ मांगा भी नहीं था।’’

‘‘तुम नहीं समझोगे तेगा...वैसे लोगों को समझने में तुम्हें देर लगेगी। आखिर मैं तुमसे ही पूछता हूं, वह ऐसा क्यों करता है?

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