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उपन्यास >> उधर के लोग

उधर के लोग

अजय नावरिया

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :187
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8249
आईएसबीएन :978-81-2671-534

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अजय नावरिया का यह उपन्यास ‘उधर के लोग’ भारतीय संस्कृति की विशिष्टता और वयैक्तिक सत्ता के साथ-साथ अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों को रेखांकित करता है...

Udhar ke Log - A Hindi Book - by Ajay Navariya

अजय नावरिया का यह उपन्यास ‘उधर के लोग’ भारतीय संस्कृति की विशिष्टता और वयैक्तिक सत्ता के साथ-साथ अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों को रेखांकित करता है। बेशक, यह उनका पहला उपन्यास है, लेकिन अपनी शिल्प संरचना और वैचारिक परिपक्वता में, यह अहसास नहीं होने देता।

उपन्यास में हिन्दू कहे जानेवाले समाज के अन्तर्विरोधों, विडम्बनाओं और पारस्परिक द्वेष के अलावा, उसके रीति-रिवाजों का भी सूक्ष्म और यथार्थपरक अंकन किया गया है। यह द्वंद्व भी उभरकर आता है कि क्या वर्णाश्रम धर्म ही हिन्दू धर्म है या कुछ और भी है?

उपन्यास, पाठकों में प्रश्नाकुलता पैदा करता है कि क्या ‘जाति’ की उपस्थिति के बावजूद ‘जातिवाद’ से बचा जा सकता है? क्यों विभिन्न समुदाय, एक-दूसरे के साथ, सह-अस्तित्व के सिद्धान्त के तहत नहीं रह सकते? क्यों भारतीय साहित्य का संघर्ष, डी-क्लास होने के पहले या साथ-साथ डी-कास्ट होने का संघर्ष नहीं बना? इसके अलावा उपन्यास में बाजार की भयावहता, वेश्यावृत्ति, यौन-विकार, विचारधाराओं की प्रासंगिकता, प्रेम, विवाह और तलाक पर भी खुलकर बात की गई है।

उपन्यासकार की सबसे बड़ी विशेषता यथार्थ को रोचक, प्रभावोत्पादक और समृद्ध भाषा में रूपान्तरित करने में है। यह सब उन्होंने नायक की जीवन-कथा के माध्यम से बड़े कुशल ढंग से किया है।

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