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कविता संग्रह >> नष्ट कुछ भी नहीं होता

नष्ट कुछ भी नहीं होता

प्रियदर्शन

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8166
आईएसबीएन :9788183615280

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प्रियदर्शन की कविताएँ

Nasht Kuchh Bhi Nahi Hota by Priyadarshan

प्रस्तुत है पुस्तक के कुछ अंश

परम्परा और प्रयोग की सन्धि पर खड़ी प्रियदर्शन की कविता जितना अपने समय और समाज से बनती है, उतना ही निजी अनुभव-संसार से। इस कविता पर समकालीन सन्दर्भों की छाप और छायाएँ हैं लेकिन उनका नितान्त निजी और मौलिक भाष्य है।

प्रियदर्शन हिन्दी कविता के आमफहम मुहावरों और जानी-पहचानी वैचारिक सरणियों से अलग रचना का एक ऐसा संसार बनाते हैं जिसमें कविता किसी विचार या सरोकार को उसकी सम्पूर्णता में पकड़ने और पढ़ने का माध्यम बन जाती है।

उनकी कविता में कई चमकती हुई पंक्तियाँ आती हैं, लेकिन कविता इन पंक्तियों तक खत्म नहीं हो जाती, वह इन रौशन इलाकों से आगे उन अँधेरे रास्तों तक भी जाती है जहाँ आमतौर पर बाकी लोगों की नज़र नहीं पड़ती। सन्दर्भबहुलता और सरोकार-गहनता उनकी कविता में सहज लक्ष्य किए जा सकने लायक गुण हैं। जो चीज उन्हें विशिष्ट बनाती है, वह उनका इतिहास और समयबोध है। वे शब्दों के जाने-पहचाने आशयों को, इतिहास और मिथक के परिचित नायकों को ज्यों का त्यों स्वीकार नहीं करते, उन्हें अपनी आँख से देखते हैं, अपने पैमानों पर कसते हैं।

सबसे अच्छी बात यह है कि विचार और सरोकार से बने इस बीहड़ में मनोयोगपूर्वक दाखिल होते हुए भी वे एक पल के लिए भी कविता को अपनी निगाह से ओझल नहीं होने देते। अन्ततः पाठक को जो मिलता है, वह एक नया आस्वाद है, नई समझ है और नई कविता है।


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