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उपन्यास >> द वाइट टाइगर

द वाइट टाइगर

अरविंद अडीगा

प्रकाशक : हार्परकॉलिंस पब्लिशर्स इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :288
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8144
आईएसबीएन :9788172238698

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एक ड्राइवर के अद्भुत सफर की कहानी...अत्यन्त रोचक व विचार-प्रवण उपन्यास

The White Tiger by Arvind Adiga

मिलिये बलराम हलवाई उर्फ़ ‘वाइट टाइगर’ से, जो है : एक चाकर, चिंतक, उद्यमी, हत्यारा। सात रातों के अन्तराल में, एक फूहड़ फानूस की छितरी-बिखरी रोशनी के मद में धुत्त हमारा नायक बलराम अपनी कहानी कहता है-

मध्य भारत के एक गाँव में जन्में, एक रिक्शा चालक के बेटे, बलराम को स्कूल से निकाल दिया जाता है और एक चाय की दुकान पर काम करने के लिए भेज दिया जाता है। कोयला तोड़ते-तोड़ते और टेबल पोंछते-पोंछते, वह अपनी मुक्ति का सपना बुनता है - उस माँ गंगा के किनारों से कहीं दूर चले जाने का सपना, जिसकी गहराइयों में समाये हैं सैकड़ों पीढ़ियों के अवशेष।

उसकी असल बारी आती है तब, जब उसके गाँव का एक अमीर ज़मीदार अपने बहू-बेटे और उनके दो पॉमेरियन कुत्तों के लिए उसे एक शोफर के बतौर पर रखता है। होण्डा के पहियों पर सवार बलराम पहली बार दिल्ली से दो-चार होता है। दिल्ली नगरिया उसके सामने कई भेद खोलती है। तिलचट्टों और कॉल-सेन्टरों, 36,000,004 देवताओं, झुग्गियों, शॉपिंग मालों और बेबस कर देने वाले ट्रैफ़िक जामों की संगत में बलराम की शिक्षा एक नये सिरे से शुरु होती है। एक निष्ठावान पुत्र व सेवक बनने के अपने बोध व अपनी बेहतरी की चाह के ही दो पाटन में पिसता बलराम एक नये भारत के हृदय में रची-बसी एक नवेली नैतिकता का पाठ पढ़ता है। जिन पलों में उसके अन्य संगी नौकर ‘मर्डर वीकली’ के पन्नों में डूबे होते, उन्हीं पलों में बलराम की नजरों में यह दृश्य उभर रहा है कि ‘टाइगर’ के लिए अपनी कैद से मुक्त होने का रास्ता किस चाभी से खुल सकता है। क्या जरूरी है कि अपने शिखर तक पहुँचने के लिए किसी सफल व्यक्ति को अपने हाथ, थोड़े ही सही, खून में रंगने पड़ें।

‘‘द वाइट टाइगर’’ दो किस्म के भारत की कथा है। ग्रामीण जीवन के अँधकारों से उपक्रमी सफ़लता के प्रकाश की ओर बलराम की यात्रा सिरे से अनैतिक लेकिन निहायत ही मोहक और अविस्मरणीय है।


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