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बैंजामिन फ्रैंकलिन की आत्मकथा

बैंजामिन फ्रैंकलिन

प्रकाशक : ज्ञान गंगा प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :120
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8055
आईएसबीएन :9789380183503

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बैंजामिन फ्रैंकलिन की आत्मकथा...

Benjamin Franklin ki Atmakatha (Benjamin Franklin)

मेरा पैंफलेट संयोगवश किसी लाइओंस नामक सर्जन के हाथों पड़ गया। वे एक लेखक भी थे। उन्होंने ‘इनफैलिबिलिटी ऑफ ह्यूमन जजमेंट’ नामक शीर्षक से पुस्तक भी लिखी थी। इससे हमें आपस में परिचित होने का मौका मिला। मेरी ओर उनका काफी रुझान बढ़ा। वे मुझसे संबंधित विषयों पर चर्चा करने आ जाया करते। उन्होंने मुझे ‘फेबल ऑफ द बीज’ के लेखक डॉ. मानडेविले से परिचित कराया। लाइओंस ने मेरी मुलाकात डॉ. पेंबर्टन से भी कराई, जिन्होंने कभी सर आइजक न्यूटन से मिलने का अवसर उपलब्ध कराने का वादा किया। उनसे (न्यूटन से) मिलने की मेरी बड़ी इच्छा भी थी, लेकिन ऐसा हो न सका।

अब तक मैं लगातार गॉडफ्रे के साथ रहता रहा। वह मेरे घर के एक हिस्से में अपने बीवी-बच्चों के साथ रहता था और दुकान का एक भाग उसने अपने ग्लेजियर व्यवसाय के लिए रखा था। गणित में खोया रहने के कारण वह थोड़ा ही काम कर पाता था। मिसेज गॉडफ्रे ने अपनी रिश्तेदारी में ही एक लड़की से मेरे विवाह की बात उठाई। वह हमें मिलाने के लिए अकसर अवसर निकाल लेती थीं। धीरे से मेरी ओर से प्रेम-प्रसंग शुरू हो गया। चूँकि लड़की भी योग्य थी, मुझे बार-बार भोजन पर बुलाकर और हमें अकेला छोड़कर प्रोत्साहित किया जा रहा। मिसेज गॉडफ्रे ने हमारी मध्यस्थता की।
- इसी आत्मकथा से



बेंजामिन फ्रैंकलिन का जन्म 17 अप्रैल, 1790 को हुआ। वे संयुक्त राज्य अमेरिका के संस्थापकों में से एक थे। वे राजनीतिज्ञ ही नहीं, एक लेखक, व्यंग्यकार, वैज्ञानिक, आविष्कारक, सैनिक, राजनयिक एवं नागरिक कार्यकर्ता भी थे। एक वैज्ञानिक के रूप में उन्होंने बिजली की छड़, बाईफोकल्स, फ्रैंकलिन स्टोव, एक गाड़ी के ऑडोमीटर और ‘ग्लास आर्मोनिका’ का आविष्कार किया। वे हरफनमौला थे। अनेक विषयों और अनेक क्षेत्रों के धुरंधर भी।

फ्रैंकलिन को अमेरिका जीवन-मूल्यों और चारित्रिक गुण निर्माता के रूप में सम्मान दिया जाता है।

फ्रैंकलिन एक अखबार के संपादक, मुद्रक और फिलाडेल्फिया में व्यापारी बने, जहाँ ‘पुअर रिचर्डस आल्मनैक’ और ‘द पेंसिल्वेनिया गजेट’ के लेखन व प्रकाशन से उन्होंने अपार धन अर्जित किया। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उनकी बहुत दिलचस्पी थी। अपने अदभुत् प्रयोगों के लिए उन्होंने अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की। पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय की स्थापना में उन्होंने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। सन् 1785 से 1788 तक वे सुप्रीम एक्जिक्यूटिव काउंसिल ऑफ पेंसिल्वेनिया के अध्यक्ष रहे। अपने जीवन के आखिरी समय में वे सबसे प्रमुख समस्या दासप्रथा के घोर विरोधी बन गए। यह प्रेरणाप्रद आत्मकथा उस महान् विभूति के बहुआयामी व्यक्तित्व का सांगोपांग परिचय देती है।


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